भारत का उत्तरी मैदान
परिचय
भारत का उत्तरी मैदान (Northern Plains) देश का सबसे उपजाऊ और घनी आबादी वाला भौगोलिक क्षेत्र है। इसे गंगा–सिंधु–ब्रह्मपुत्र के मैदान भी कहा जाता है। यह मैदान हिमालय की दक्षिणी तलहटी से लेकर प्रायद्वीपीय भारत तक फैला है। इस क्षेत्र ने न केवल भारत की कृषि और अर्थव्यवस्था को मजबूती दी है बल्कि यहाँ की सभ्यताओं, संस्कृति और राजनीति ने भी भारतीय इतिहास को दिशा दी है।
उत्तरी मैदान का विस्तार
- उत्तरी मैदान पश्चिम में सिंधु नदी के मैदान से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के मैदान तक फैला है।
- यह लगभग 2400 किलोमीटर लंबा और 240–320 किलोमीटर चौड़ा क्षेत्र है।
- इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 7 लाख वर्ग किलोमीटर है।
- उत्तर में हिमालय और दक्षिण में विन्ध्य–सतपुड़ा पर्वतमाला इसकी सीमाएँ निर्धारित करती हैं।
उत्तरी मैदान की उत्पत्ति
- यह मैदान मुख्यतः हिमालयी नदियों द्वारा लाई गई गाद और जलोढ़ मिट्टी के निक्षेप से बना है।
- लाखों वर्षों तक गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी नदियों ने यहाँ उपजाऊ मिट्टी जमा की।
- इसी कारण इसे अत्यंत उपजाऊ जलोढ़ मैदान कहा जाता है।
उत्तरी मैदान के प्रमुख भाग
उत्तरी मैदान को तीन भागों में बाँटा जा सकता है:
1. पंजाब का मैदान
- सिंधु और उसकी सहायक नदियों (झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलज) द्वारा निर्मित।
- यहाँ का दोआब क्षेत्र अत्यधिक उपजाऊ है।
- सिंचाई और हरित क्रांति के कारण यह भारत का अनाज का भंडार कहलाता है।
2. गंगा का मैदान
- गंगा और उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित विशाल क्षेत्र।
- उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के बड़े हिस्से को शामिल करता है।
- यहाँ चावल, गेहूँ, गन्ना और दालों की खेती होती है।
- भारतीय सभ्यता और राजनीति का प्रमुख केंद्र।
3. ब्रह्मपुत्र का मैदान
- असम और अरुणाचल प्रदेश के आसपास फैला क्षेत्र।
- ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित।
- यहाँ चाय बागान और गीली खेती प्रमुख हैं।
उत्तरी मैदान की भौगोलिक विशेषताएँ
- जमीन का समतलपन – परिवहन और कृषि के लिए उपयुक्त।
- जलोढ़ मिट्टी – अत्यधिक उपजाऊ, हर प्रकार की फसलों के लिए अनुकूल।
- नदी तंत्र – गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी विशाल नदियाँ।
- जल संसाधन की प्रचुरता – सिंचाई, जल परिवहन और उद्योग के लिए उपयुक्त।
उत्तरी मैदान का आर्थिक महत्व
- कृषि – यह क्षेत्र भारत की कुल खाद्यान्न आवश्यकता का बड़ा हिस्सा पूरा करता है।
- उद्योग – कपड़ा, चीनी, जूट, खाद्य प्रसंस्करण और लघु उद्योग विकसित।
- परिवहन – सड़क और रेल मार्ग के लिए अनुकूल समतल भूमि।
- व्यापार – कोलकाता, दिल्ली, कानपुर, लखनऊ और पटना जैसे प्रमुख व्यापारिक केंद्र।
उत्तरी मैदान का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
- प्राचीन सभ्यताएँ जैसे सिंधु घाटी सभ्यता और गंगा–यमुना सभ्यता यहीं फली-फूलीं।
- यह क्षेत्र हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के उद्भव का केंद्र रहा।
- यहाँ अनेक ऐतिहासिक नगर जैसे दिल्ली, वाराणसी, पटना, इलाहाबाद, कोलकाता स्थित हैं।
- भाषाई विविधता – हिंदी, उर्दू, बंगाली, पंजाबी, असमी और अन्य भाषाएँ।
उत्तरी मैदान की चुनौतियाँ
- बाढ़ की समस्या – गंगा और ब्रह्मपुत्र की बाढ़ से हर वर्ष हानि होती है।
- अत्यधिक जनसंख्या दबाव – घनी आबादी के कारण संसाधनों पर भार।
- भूमि क्षरण – अंधाधुंध खेती और रासायनिक उपयोग से उपजाऊ भूमि घट रही है।
- औद्योगिक प्रदूषण – नदियों और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव।
निष्कर्ष
भारत का उत्तरी मैदान केवल भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि यह देश की आर्थिक समृद्धि, सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक गौरव का केंद्र है। यहाँ की उपजाऊ मिट्टी, समृद्ध नदियाँ और समतल भू-भाग ने इसे भारत का हृदय स्थल बना दिया है। यदि बाढ़ नियंत्रण, प्रदूषण और जनसंख्या जैसी चुनौतियों का समाधान किया जाए, तो यह क्षेत्र भविष्य में भी भारत के कृषि और औद्योगिक विकास की रीढ़ बना रहेगा।
 
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