भारत के तटीय मैदान

 भारत के तटीय मैदान

भौगोलिक स्वरूप, आर्थिक महत्व और संस्कृति

भारत का तटीय मैदान (Coastal Plains) देश की भौगोलिक संरचना का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मैदान भारत के पूर्व और पश्चिम में समुद्र तटों के साथ फैला हुआ है। तटीय मैदान न केवल भू-आकृतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि भारत की कृषि, मत्स्य पालन, व्यापार, उद्योग और पर्यटन में भी इनकी बड़ी भूमिका है।


तटीय मैदान का विस्तार

  • भारत के तटीय मैदान लगभग 6100 किलोमीटर लंबाई में फैले हैं।
  • पश्चिमी तट पर यह मैदान गुजरात से केरल तक फैला है।
  • पूर्वी तट पर यह मैदान पश्चिम बंगाल से तमिलनाडु तक फैला हुआ है।
  • तटीय मैदान अपेक्षाकृत संकीर्ण (50–100 किमी) हैं, लेकिन अत्यधिक उपजाऊ और समृद्ध हैं।


तटीय मैदान के प्रमुख भाग

भारत के तटीय मैदान को दो बड़े भागों में बाँटा जाता है:

1. पश्चिमी तटीय मैदान

  • यह मैदान गुजरात से केरल तक फैला है।
  • उत्तर में यह अपेक्षाकृत चौड़ा और दक्षिण में संकरा है।

मुख्य भाग:

  • कच्छ और काठियावाड़ का तट
  • कोंकण तट (मुंबई–गोवा क्षेत्र)
  • कनारा तट (कर्नाटक का तट)
  • मालाबार तट (केरल)

  • यहाँ नारियल, सुपारी, मसाले और धान की खेती होती है।
  • मुंबई, कोचीन और मर्मगाँव जैसे बंदरगाह व्यापार के लिए प्रसिद्ध हैं।

2. पूर्वी तटीय मैदान

  • यह मैदान पश्चिम बंगाल से तमिलनाडु तक फैला है।
  • पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में अधिक चौड़ा है।

मुख्य भाग:

  • उड़ीसा तट (उत्कल मैदान)
  • आंध्र तट (कृष्णा–गोदावरी मैदान)
  • कोरोमंडल तट (तमिलनाडु)
  • यहाँ नदियाँ डेल्टा बनाती हैं – गंगा–ब्रह्मपुत्र, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी
  • इस क्षेत्र को “धान का कटोरा” कहा जाता है।
  • कोलकाता, चेन्नई और विशाखापट्टनम प्रमुख बंदरगाह हैं।


तटीय मैदान की भौगोलिक विशेषताएँ

  1. उपजाऊ मिट्टी – गाद और जलोढ़ मिट्टी से भरपूर।
  2. नदी डेल्टा – गंगा, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी नदियों के डेल्टा।
  3. जलवायु – गर्म और आर्द्र जलवायु, मानसूनी वर्षा।
  4. समुद्र तट – रेतीले तट, झीलें और मुहाने (Estuaries)।


तटीय मैदान का आर्थिक महत्व

  1. कृषि – धान, गन्ना, नारियल, सुपारी, मसाले और बागान कृषि।
  2. मत्स्य पालन – भारत की मछली उत्पादन का बड़ा हिस्सा यहीं से आता है।
  3. खनिज और उद्योग – पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और खनिज तेल।
  4. बंदरगाह और व्यापार – कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, कोचीन जैसे बंदरगाह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के केंद्र।
  5. पर्यटन – गोवा, कोवलम, पुरी, महाबलीपुरम जैसे समुद्र तट।


तटीय मैदान का सांस्कृतिक महत्व

  • यह क्षेत्र प्राचीन सभ्यताओं और व्यापार का केंद्र रहा है।
  • पुरी रथयात्रा, महाबलीपुरम के मंदिर, कोचीन का डच पैलेस सांस्कृतिक धरोहर हैं।
  • यहाँ की भाषा और संस्कृति में समुद्री जीवन और व्यापार का प्रभाव स्पष्ट दिखता है।


तटीय मैदान की चुनौतियाँ

  1. चक्रवात और बाढ़ – विशेषकर पूर्वी तट पर।
  2. समुद्र के बढ़ते जलस्तर से भूमि डूबने का खतरा।
  3. प्रदूषण – औद्योगिक और शहरी कचरे से समुद्र का प्रदूषण।
  4. अत्यधिक जनसंख्या दबाव – संसाधनों पर दबाव।


निष्कर्ष

भारत के तटीय मैदान केवल भौगोलिक संरचना नहीं, बल्कि देश की आर्थिक रीढ़ और सांस्कृतिक धरोहर भी हैं। यहाँ की उपजाऊ मिट्टी, समृद्ध नदियाँ, विश्वस्तरीय बंदरगाह और पर्यटन स्थलों ने भारत को वैश्विक पहचान दिलाई है। यदि प्राकृतिक आपदाओं और प्रदूषण जैसी चुनौतियों का समाधान किया जाए, तो तटीय मैदान भारत के टिकाऊ विकास और वैश्विक व्यापार में और भी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।



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