भारत में मृदा के प्रकार
विशेषताएँ, वितरण और महत्व
भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ की मृदा (Soil) कृषि एवं जीवन का आधार है। विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों, जलवायु, वनस्पति और चट्टानों के कारण भारत में भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं। प्रत्येक मिट्टी की अपनी विशिष्ट उर्वरता, रंग, बनावट और फसल उत्पादन क्षमता होती है।
भारत में मृदा के प्रमुख प्रकार
1. जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil)
वितरण – गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी घाटियों में; उत्तर भारत के मैदानों में।- रंग हल्का भूरा से पीला।
- कण महीन, परंतु उपजाऊ।
- इसमें पोटाश, चूना, फॉस्फोरस पर्याप्त मात्रा में, परंतु नाइट्रोजन की कमी।
फसलें – धान, गेहूँ, गन्ना, जूट, दालें।
महत्त्व – भारत की सर्वाधिक उपजाऊ और व्यापक मिट्टी।
2. काली मृदा (Black Soil / Regur Soil)
वितरण – महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक।- काली रंग की, चिकनी और नमी सोखने वाली।
- सूखने पर दरारें पड़ती हैं।
- इसमें चूना, आयरन, मैग्नीशियम अधिक मात्रा में।
3. लाल मृदा (Red Soil)
वितरण – तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़।- रंग लाल (लोहे की उपस्थिति से)।
- उर्वरता कम, परंतु जैविक खाद से सुधारी जा सकती है।
- पानी सोखने की क्षमता मध्यम।
4. लेटराइट मृदा (Laterite Soil)
वितरण – पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़।- लाल-भूरी मिट्टी, अम्लीय और लोहे-एल्युमिनियम से भरपूर।
- वर्षा से पोषक तत्व बह जाते हैं।
5. मरुस्थलीय मृदा (Desert Soil)
वितरण – राजस्थान, हरियाणा, पंजाब के शुष्क क्षेत्र।- रेतीली मिट्टी, कार्बनिक पदार्थ की कमी।
- लवणीय और क्षारीय प्रवृत्ति।
6. वन एवं पर्वतीय मृदा (Forest and Mountain Soil)
वितरण – हिमालय, उत्तर-पूर्वी राज्य, पश्चिमी घाट।- रंग भूरा, उर्वरता ऊँचाई के अनुसार बदलती।
- कार्बनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में।
7. दलदली एवं क्षारीय मृदा (Marshy & Saline Soil)
वितरण – सुंदरबन डेल्टा, केरल का तटीय क्षेत्र, राजस्थान का रण।- नमक और क्षार की मात्रा अधिक।
- प्राकृतिक रूप से कम उपजाऊ।
सारणी : भारत की प्रमुख मृदा प्रकार
| मृदा का प्रकार | प्रमुख क्षेत्र | विशेषताएँ | प्रमुख फसलें | 
|---|---|---|---|
| जलोढ़ मृदा | उत्तर भारत का मैदान | उपजाऊ, पोटाश व फॉस्फोरस युक्त | गेहूँ, धान, गन्ना, जूट | 
| काली मृदा | दक्कन का पठार | काली, नमी धारण करने वाली | कपास, सोयाबीन, गन्ना | 
| लाल मृदा | दक्षिण-पूर्व भारत | लाल रंग, उर्वरता मध्यम | बाजरा, मूँगफली, कपास | 
| लेटराइट मृदा | पश्चिमी घाट, झारखंड | अम्लीय, लोहे से भरपूर | चाय, कॉफी, रबर | 
| मरुस्थलीय मृदा | राजस्थान, गुजरात | रेतीली, कार्बनिक पदार्थ कम | बाजरा, ज्वार, कपास | 
| वन एवं पर्वतीय मृदा | हिमालय, पूर्वोत्तर | कार्बनिक पदार्थ प्रचुर | चाय, कॉफी, फल | 
| दलदली/क्षारीय मृदा | सुंदरबन, रण | लवणीय, जल-जमाव वाली | धान, नारियल | 
मृदा का महत्व
- कृषि उत्पादन – भारत की 60% आबादी की आजीविका मिट्टी पर निर्भर।
- उद्योग – कपास, गन्ना, चाय आदि पर आधारित उद्योग।
- पारिस्थितिकी संतुलन – मिट्टी जल चक्र और पोषण चक्र का हिस्सा।
- सांस्कृतिक जीवन – कृषि से जुड़े त्यौहार और परंपराएँ।
चुनौतियाँ और संरक्षण
- मृदा अपरदन (Soil Erosion) – अधिक कटाई और बारिश से।
- क्षारीयता और लवणीयता – अत्यधिक सिंचाई से।
- जैविक पदार्थ की कमी – रासायनिक खादों पर निर्भरता।
संरक्षण उपाय –
- वृक्षारोपण और कंटूर खेती।
- फसल चक्र अपनाना।
- जैविक खाद और हरी खाद का प्रयोग।
- सिंचाई के संतुलित साधन।
निष्कर्ष
भारत की विविध मृदा इसकी कृषि और अर्थव्यवस्था की नींव है। प्रत्येक मिट्टी की अपनी विशेषता और उपयुक्त फसलें हैं। यदि हम इनका सतत उपयोग और संरक्षण करें तो भारत की खाद्य सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि लंबे समय तक सुनिश्चित रह सकती है।
 
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