भारतीय सिंचाई प्रणाली
भारत एक कृषि प्रधान देश है, और यहाँ की कृषि काफी हद तक मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है। लेकिन वर्षा का वितरण असमान और अनिश्चित होने के कारण सिंचाई प्रणाली भारतीय कृषि की रीढ़ मानी जाती है। एक मजबूत और विकसित सिंचाई व्यवस्था से न केवल फसल उत्पादन में वृद्धि होती है बल्कि यह कृषि की स्थिरता और खाद्य सुरक्षा की भी गारंटी देती है।
भारतीय सिंचाई प्रणाली का महत्व
- वर्षा आधारित कृषि की असमानता को दूर करना।
- फसल उत्पादन में निरंतरता और स्थिरता बनाए रखना।
- बहुफसली कृषि (Multiple Cropping) को बढ़ावा देना।
- सूखा और अकाल की स्थिति में किसानों को सहारा प्रदान करना।
- कृषि उपज में वृद्धि और किसानों की आय दोगुनी करने का आधार।
भारत में सिंचाई के प्रमुख स्रोत
1. कुएँ और नलकूप सिंचाई
- भारत में सबसे अधिक प्रचलित सिंचाई प्रणाली।
- भूजल पर आधारित।
- नलकूप सिंचाई विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा में।
- लाभ: सुलभ, सस्ती और व्यक्तिगत नियंत्रण।
- समस्या: भूजल स्तर में गिरावट।
2. नहर सिंचाई
- सतही जल पर आधारित।
- प्रमुख क्षेत्र: पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान।
- गंगा नहर, इंदिरा गांधी नहर, सतलुज-यमुना लिंक नहर प्रमुख उदाहरण।
- लाभ: बड़े क्षेत्रों में सिंचाई संभव।
- समस्या: जलभराव और क्षारीयता।
3. तालाब और झील सिंचाई
- पारंपरिक सिंचाई स्रोत।
- दक्षिण भारत में "एरी" प्रणाली (तमिलनाडु) प्रसिद्ध।
- झील सिंचाई: चilka झील, डल झील और लोखतक झील से सिंचाई।
4. नदी आधारित सिंचाई
- नदियों से सीधी नहरें या पंपिंग करके सिंचाई।
- प्रमुख नदियाँ: गंगा, यमुना, कावेरी, गोदावरी, कृष्णा, महानदी।
5. टैंक सिंचाई
- दक्षिण भारत (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक) में प्रचलित।
- बरसाती जल को संग्रह कर सिंचाई हेतु उपयोग।
6. आधुनिक सिंचाई पद्धतियाँ
(क) ड्रिप सिंचाई
- पानी की बूंद-बूंद सीधे पौधों की जड़ों तक।
- उपयुक्त क्षेत्र: महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु।
- लाभ: जल संरक्षण, अधिक उत्पादन, खरपतवार नियंत्रण।
(ख) स्प्रिंकलर सिंचाई
- पाइप और नोज़ल से बारिश जैसी सिंचाई।
- उपयुक्त: शुष्क क्षेत्र और रेतीली मिट्टी।
- प्रमुख क्षेत्र: राजस्थान, हरियाणा, गुजरात।
भारत में सिंचाई का क्षेत्रीय वितरण
- उत्तर-पश्चिम भारत (पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश): नहर और नलकूप।
- पूर्वी भारत (बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा): नलकूप और तालाब।
- दक्षिण भारत (आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक): टैंक और नदी आधारित सिंचाई।
- राजस्थान: इंदिरा गांधी नहर और ड्रिप सिंचाई।
सिंचाई से जुड़ी समस्याएँ
- भूजल स्तर का लगातार गिरना।
- नहर क्षेत्रों में जलभराव और लवणीयता।
- कई क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाओं का असमान वितरण।
- किसानों के लिए उच्च लागत और रखरखाव की समस्या।
- आधुनिक तकनीक का सीमित प्रयोग।
सिंचाई प्रणाली के सुधार हेतु उपाय
- वर्षा जल संचयन और चेक-डैम निर्माण।
- सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों (ड्रिप और स्प्रिंकलर) का प्रसार।
- नहरों का आधुनिकीकरण और जल रिसाव पर नियंत्रण।
- भूजल दोहन पर नियंत्रण और पुनर्भरण की व्यवस्था।
- नदी जोड़ परियोजना (River Linking Project) का क्रियान्वयन।
- किसानों को जागरूक कर जल उपयोग दक्षता (Water Use Efficiency) बढ़ाना।
निष्कर्ष
भारतीय कृषि की उन्नति का मार्ग एक मजबूत और संतुलित सिंचाई प्रणाली पर निर्भर है। यदि पारंपरिक और आधुनिक दोनों प्रकार की तकनीकों का सही समन्वय किया जाए, तो न केवल किसानों की उत्पादकता बढ़ेगी बल्कि भारत कृषि के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व कर सकेगा।
 
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