अर्थव्यवस्था पर अंग्रेजों का प्रभाव
शोषण, परिवर्तन और आधुनिक ढाँचे की नींव
परिचय: ब्रिटिश शासन और भारतीय अर्थव्यवस्था
अंग्रेजों के शासन (1757–1947) ने भारत की अर्थव्यवस्था की संरचना, स्वरूप और दिशा को पूरी तरह बदल दिया। यह बदलाव एक ओर जहाँ आर्थिक शोषण और संसाधनों की लूट का प्रतीक था, वहीं दूसरी ओर इसने कुछ आधुनिक संस्थाओं और ढाँचों की नींव भी रखी। ब्रिटिश आर्थिक नीतियों ने भारत को औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में बदल दिया, जिसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटेन के हित साधना था।
कृषि पर प्रभाव
- नकदी फसलें – कपास, जूट, नील, चाय और अफीम की खेती को प्राथमिकता, जिससे खाद्यान्न उत्पादन घटा और अकाल की घटनाएँ बढ़ीं।
- भूमि व्यवस्था – स्थायी बंदोबस्त, रैयतवाड़ी और महालवाड़ी व्यवस्था लागू की गई, जिससे किसानों पर कर का बोझ बढ़ा।
- अकाल और गरीबी – भू-राजस्व की कठोर वसूली और खाद्यान्न संकट ने ग्रामीण जीवन को संकटग्रस्त किया।
उद्योग और हस्तशिल्प पर प्रभाव
- पारंपरिक कुटीर उद्योग, विशेषकर हाथकरघा वस्त्र उद्योग, ब्रिटिश मशीन निर्मित वस्त्रों के कारण नष्ट हो गया।
- कुशल कारीगर बेरोजगार हुए और शहरों में गरीबी बढ़ी।
- ब्रिटिश नीतियों के तहत भारत को कच्चा माल आपूर्ति करने वाला और ब्रिटिश तैयार माल का बाजार बना दिया गया।
व्यापार और वाणिज्य पर प्रभाव
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का ढाँचा – भारत से कच्चा माल (कपास, जूट, नील, अफीम) ब्रिटेन भेजा जाता और वहाँ से तैयार माल आयात होता।
- एकतरफा व्यापार संतुलन – लाभ ब्रिटेन को, घाटा भारत को।
- विदेशी पूँजी का वर्चस्व – उद्योगों और बैंकिंग में अंग्रेजी पूँजी का नियंत्रण।
परिवहन और संचार में बदलाव
- रेलवे का विकास – 1853 में पहली रेलगाड़ी, जिसने व्यापार और प्रशासन को सुदृढ़ किया लेकिन उद्देश्य मुख्यतः ब्रिटिश हित।
- सड़क, पुल और बंदरगाह – कच्चे माल की ढुलाई और माल निर्यात के लिए बनाए गए।
- टेलीग्राफ और डाक सेवा – प्रशासन और सैन्य नियंत्रण के लिए विकसित।
मुद्रा और बैंकिंग पर प्रभाव
- एकीकृत मुद्रा प्रणाली लागू, जिसमें रुपया मुख्य मुद्रा बना।
- बैंकिंग संस्थाओं – प्रेसीडेंसी बैंक (बाद में रिज़र्व बैंक) की स्थापना, लेकिन मुख्यतः ब्रिटिश व्यापार को सहारा देने के लिए।
श्रमिक वर्ग और सामाजिक प्रभाव
- उद्योगों में श्रमिक वर्ग का उदय, लेकिन वेतन कम और कार्य परिस्थितियाँ खराब।
- शहरीकरण बढ़ा, परंतु झुग्गी-बस्तियों और अस्वस्थ जीवन स्थितियों का भी विस्तार हुआ।
- औद्योगिक श्रमिक आंदोलनों की शुरुआत, जो आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए।
सकारात्मक पहलू
- आधुनिक परिवहन और संचार व्यवस्था की नींव।
- कुछ आधुनिक उद्योगों (कपड़ा, इस्पात, जूट) का विकास।
- एकीकृत बाजार और मुद्रा प्रणाली की स्थापना।
नकारात्मक पहलू
- डी-इंडस्ट्रियलाइजेशन – पारंपरिक उद्योगों का पतन।
- कृषि संकट और ग्रामीण निर्धनता।
- निर्यात-आयात में असंतुलन और संसाधनों की लूट।
- आर्थिक आत्मनिर्भरता का अंत और विदेशी निर्भरता का बढ़ना।
निष्कर्ष
अंग्रेजों का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर मिश्रित था, लेकिन समग्र दृष्टि से यह भारतीय जनता के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ। ब्रिटिश शासन ने भारत को कच्चा माल आपूर्ति करने वाला देश बना दिया, जिससे उसकी आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था ढह गई। हालांकि उन्होंने परिवहन, संचार और आधुनिक उद्योगों की कुछ बुनियाद रखी, पर यह भी मुख्यतः औपनिवेशिक शोषण के हित में था।
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