संविधान संशोधन से संबंधित अनुच्छेद
भारतीय संविधान एक लचीला और कठोर दोनों प्रकृति का दस्तावेज़ है। इसे समय की आवश्यकताओं के अनुसार बदला जा सकता है। इस प्रक्रिया को संविधान संशोधन (Constitutional Amendment) कहा जाता है।
⚖️ संविधान संशोधन से संबंधित मुख्य अनुच्छेद
1. अनुच्छेद 368 – संविधान संशोधन की प्रक्रिया
- यह संविधान संशोधन से संबंधित मुख्य अनुच्छेद है।
- संसद को संविधान संशोधन की शक्ति प्रदान करता है।
इसमें संशोधन की तीन विधियाँ दी गई हैं :
- साधारण बहुमत (Simple Majority) – साधारण कानूनों की तरह।
- विशेष बहुमत (Special Majority) – उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 और कुल सदस्यों का बहुमत।
- विशेष बहुमत + राज्यों की सहमति – संविधान के संघीय प्रावधानों को बदलने हेतु आधे से अधिक राज्यों की सहमति आवश्यक।
2. अनुच्छेद 13 – मौलिक अधिकारों से संबंधित संशोधन
- कोई भी कानून जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, शून्य होगा।
- यहीं से न्यायपालिका को यह अधिकार मिलता है कि वह संसद द्वारा किए गए संशोधनों की वैधता की जाँच करे।
3. अनुच्छेद 368(2)
- संशोधन प्रस्ताव (Constitutional Amendment Bill) केवल संसद में ही लाया जा सकता है।
- इसे लोकसभा या राज्यसभा – किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है।
- इसे राष्ट्रपति की अनुमति से पारित किया जाता है; राष्ट्रपति इसे अस्वीकार नहीं कर सकते।
4. अनुच्छेद 169
- किसी राज्य की विधान परिषद (Legislative Council) के सृजन या समाप्ति के लिए संसद विशेष बहुमत से कानून बना सकती है।
5. अनुच्छेद 4 और 169(1)
- राज्य पुनर्गठन या सीमाओं में बदलाव हेतु किए गए संशोधन को संवैधानिक संशोधन नहीं माना जाएगा, अर्थात इसे अनुच्छेद 368 की प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता।
6. अनुच्छेद 368(1)
- संसद को संविधान संशोधन का विशेषाधिकार देता है।
- परंतु यह शक्ति मूल संरचना सिद्धांत (Basic Structure Doctrine) से बंधी हुई है।
📜 संविधान संशोधन से जुड़ी न्यायिक व्याख्याएँ
- शंकर प्रसाद केस (1951) – संसद के संशोधन अधिकार को पूर्ण माना।
- केशवानंद भारती केस (1973) – संसद मूल संरचना को नहीं बदल सकती।
- मिनर्वा मिल्स केस (1980) – न्यायपालिका ने संसद की शक्ति पर और सीमाएँ तय कीं।
✅ निष्कर्ष
भारतीय संविधान का संशोधन तंत्र मुख्यतः अनुच्छेद 368 पर आधारित है, लेकिन अनुच्छेद 13, 169, 4 आदि भी इससे जुड़े हुए हैं। न्यायपालिका ने यह सुनिश्चित किया है कि संविधान का मूल ढाँचा (जैसे – लोकतंत्र, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, मौलिक अधिकार) कभी न बदले।
 
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