दक्षिणी पठार

दक्षिणी पठार

भारत की भूगोलिक और सांस्कृतिक धरोहर

परिचय

दक्षिणी पठार, जिसे प्रायद्वीपीय पठार या दक्कन का पठार भी कहा जाता है, भारत का एक विशाल और प्राचीन भू-आकृतिक क्षेत्र है। यह न केवल अपनी भूगर्भीय संरचना, खनिज संपदा और कृषि के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अपनी विविध जलवायु, नदियों, संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के कारण भी अद्वितीय स्थान रखता है।


1. भौगोलिक विस्तार और सीमाएँ

  • स्थान: भारत के दक्षिणी हिस्से का अधिकांश भाग।
  • उत्तर में: विन्ध्य और सतपुड़ा पर्वत श्रेणियाँ।
  • पूर्व में: पूर्वी घाट।
  • पश्चिम में: पश्चिमी घाट।
  • दक्षिण में: नीलगिरि पर्वत और केप कोमोरिन (कन्याकुमारी)।
  • क्षेत्रफल: लगभग 16 लाख वर्ग किमी।


2. भौगोलिक संरचना

यह क्षेत्र प्राचीन आग्नेय और कायांतरित चट्टानों से बना है।

  • मुख्य भाग:

    मालवा का पठार – उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र।
  • छोटानागपुर का पठार – खनिज संपदा से भरपूर।
  • दक्कन का पठार – अधिकांश भाग, काले कपास की मिट्टी से आच्छादित।

3. नदियाँ और जल संसाधन

  • पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ: गोदावरी, कृष्णा, कावेरी।
  • पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ: नर्मदा, ताप्ती, माही।

नदियों का महत्व:


सिंचाई और कृषि।
जलविद्युत उत्पादन।
मछली पालन और जल परिवहन।

4. जलवायु और वनस्पति

जलवायु: उष्णकटिबंधीय, मानसूनी प्रभाव के साथ।

वनस्पति:

शुष्क पर्णपाती वन (तेक, साल)।
नीलगिरि और पश्चिमी घाट में सदाबहार वन।
कई औषधीय और वाणिज्यिक पौधों की प्रजातियाँ।

5. मृदा और कृषि

  • काली मिट्टी (रेगुर) – कपास के लिए उपयुक्त।
  • लाल और पीली मिट्टी – बाजरा, दाल, गन्ना और मूंगफली।
  • कृषि उत्पाद: कपास, गन्ना, तंबाकू, कॉफी, मसाले।
  • यहाँ की कृषि वर्षा पर अत्यधिक निर्भर है, लेकिन सिंचाई परियोजनाएँ भी प्रचलित हैं।


6. खनिज और उद्योग

  • खनिज संपदा: लौह अयस्क, कोयला, मैंगनीज, बॉक्साइट, सोना, अभ्रक।
  • मुख्य औद्योगिक केंद्र: झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना।
  • उद्योग: इस्पात, सीमेंट, कागज, वस्त्र, आईटी उद्योग (बेंगलुरु, हैदराबाद)।


7. सांस्कृतिक महत्व

  • यह क्षेत्र दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला और ड्रविड़ संस्कृति का केंद्र है।
  • प्रमुख ऐतिहासिक स्थल: हम्पी, बदामी, अजंता-एलोरा, बेलूर-हलेबिडु।
  • भाषाएँ: कन्नड़, तेलुगु, तमिल, मराठी, मलयालम।
  • यहाँ के लोकनृत्य, शास्त्रीय संगीत (कर्नाटिक संगीत) और त्योहार (पोंगल, ओणम) प्रसिद्ध हैं।


8. पर्यटन का महत्व

  • प्राकृतिक स्थल: नीलगिरि हिल्स, कूर्ग, कोडैकनाल, मुन्नार।
  • ऐतिहासिक धरोहर: गोलकुंडा किला, मैसूर पैलेस, बीजापुर।
  • वन्यजीव अभयारण्य: बंदीपुर, नागरहोल, पेरियार, सतपुड़ा।


9. आर्थिक और सामरिक महत्व

  • यह क्षेत्र भारत की खनिज और ऊर्जा उत्पादन की रीढ़ है।
  • यहाँ के समुद्री तट (चेन्नई, विशाखापट्टनम, मंगालुरु) अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • कृषि, उद्योग और पर्यटन से यह क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देता है।


निष्कर्ष

दक्षिणी पठार अपनी भूगोलिक विविधता, प्राकृतिक संसाधन, सांस्कृतिक समृद्धि और आर्थिक महत्व के कारण भारत का अभिन्न अंग है। यह क्षेत्र न केवल प्राचीन सभ्यताओं का पालना रहा है, बल्कि आज भी भारत की उन्नति और समृद्धि में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।



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