आर्थिक असमानताएँ और गरीबी
भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख चुनौतियाँ
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में आर्थिक असमानताएँ और गरीबी एक लंबे समय से चली आ रही गंभीर समस्या है। एक ओर हम तेज़ आर्थिक विकास, आईटी क्रांति और वैश्विक मंच पर बढ़ती प्रतिष्ठा की चर्चा करते हैं, तो दूसरी ओर समाज के बड़े हिस्से को गरीबी, बेरोजगारी और बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझते हुए देखते हैं।
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि आर्थिक असमानताएँ और गरीबी क्या हैं, इनके कारण क्या हैं, भारत पर इनका क्या प्रभाव पड़ता है और इनसे निपटने के लिए सरकार तथा समाज को किन कदमों की आवश्यकता है।
आर्थिक असमानता: परिभाषा और स्वरूप
आर्थिक असमानता का अर्थ है – समाज के अलग-अलग वर्गों, व्यक्तियों या क्षेत्रों के बीच आय, संपत्ति और संसाधनों के असमान वितरण की स्थिति।
भारत में आर्थिक असमानता कई रूपों में दिखाई देती है:
- ग्रामीण और शहरी असमानता
- अमीर और गरीब के बीच की खाई
- क्षेत्रीय असमानता (उदाहरण: दक्षिण भारत बनाम पूर्वी भारत)
- सामाजिक असमानता (जाति, लिंग और शिक्षा के आधार पर)
गरीबी: परिभाषा और प्रकार
गरीबी का अर्थ है वह स्थिति जिसमें व्यक्ति या परिवार अपनी मूलभूत आवश्यकताओं – भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य – को पूरा करने में असमर्थ हो।
गरीबी के प्रकार:
- सापेक्ष गरीबी (Relative Poverty) – जब समाज के किसी वर्ग की आय औसत आय से काफी कम हो।
- निरपेक्ष गरीबी (Absolute Poverty) – जब व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति भी न कर सके।
- बहुआयामी गरीबी (Multidimensional Poverty) – केवल आय ही नहीं बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर की कमी को भी शामिल करती है।
भारत में आर्थिक असमानता और गरीबी की स्थिति
- गरीबी रेखा: नीति आयोग के अनुसार भारत की लगभग 12–14% आबादी अब भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है।
- आर्थिक असमानता: Oxfam रिपोर्ट के अनुसार भारत की शीर्ष 10% आबादी के पास कुल संपत्ति का लगभग 77% हिस्सा है, जबकि निचले 60% लोगों के पास केवल 4%।
- क्षेत्रीय विषमता: महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक जैसे राज्य आर्थिक रूप से समृद्ध हैं, जबकि बिहार, झारखंड और उड़ीसा पिछड़े हुए हैं।
- ग्रामीण-शहरी अंतर: ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की सुविधाएँ शहरी क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम हैं।
आर्थिक असमानता और गरीबी के कारण
- जनसंख्या वृद्धि – तेजी से बढ़ती आबादी के कारण संसाधनों पर दबाव।
- शिक्षा और कौशल की कमी – गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी से रोजगार के अवसर सीमित।
- बेरोजगारी – विशेषकर युवाओं में काम की कमी।
- भूमि और संसाधनों का असमान वितरण – ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे किसानों की समस्याएँ।
- औद्योगिक और क्षेत्रीय असमानता – उद्योग और निवेश मुख्यतः कुछ राज्यों और शहरों तक सीमित।
- सामाजिक असमानता – जाति, लिंग और वर्ग आधारित भेदभाव।
- भ्रष्टाचार और नीतिगत कमियाँ – योजनाओं का लाभ ज़रूरतमंदों तक सही से न पहुँचना।
आर्थिक असमानता और गरीबी के प्रभाव
- सामाजिक असंतोष – असमानता से असंतोष और अशांति बढ़ती है।
- अपराध दर में वृद्धि – बेरोजगारी और गरीबी अपराध को बढ़ावा देती है।
- आर्थिक विकास में बाधा – गरीब वर्ग की उपभोग क्षमता कम होने से बाजार की मांग प्रभावित होती है।
- मानव विकास सूचकांक (HDI) में गिरावट – शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर पर प्रतिकूल असर।
- राजनीतिक अस्थिरता – असमानता सामाजिक न्याय और लोकतंत्र को कमजोर करती है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
गरीबी उन्मूलन योजनाएँ
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA)
- प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना (PMAY)
- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM)
वित्तीय समावेशन
- प्रधानमंत्री जनधन योजना
- आधार आधारित प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT)
- माइक्रोफाइनेंस और स्व-सहायता समूह (SHGs)
खाद्य सुरक्षा
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS)
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA)
शिक्षा और कौशल विकास
- सर्व शिक्षा अभियान
- कौशल भारत मिशन (Skill India Mission)
सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ
- अटल पेंशन योजना
- प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना
- आयुष्मान भारत योजना
समाधान और सुधार के उपाय
- समावेशी विकास – हर क्षेत्र और वर्ग तक विकास की पहुँच।
- शिक्षा और कौशल विकास – युवाओं को रोजगार योग्य बनाना।
- ग्रामीण औद्योगिकीकरण – गाँवों में छोटे उद्योग और स्वरोजगार के अवसर।
- भूमि सुधार और कृषि आधुनिकीकरण – किसानों की आय बढ़ाना।
- महिला सशक्तिकरण – महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और सुरक्षा।
- सामाजिक सुरक्षा – बुजुर्गों, दिव्यांगों और गरीब परिवारों के लिए मजबूत योजनाएँ।
- भ्रष्टाचार पर नियंत्रण – योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थियों तक पहुँचाना।
निष्कर्ष
भारत ने पिछले कुछ दशकों में गरीबी घटाने और आर्थिक विकास को बढ़ाने में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन आर्थिक असमानताएँ और गरीबी अब भी हमारी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हैं। यदि हम समान अवसर, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार सुनिश्चित करें तो न केवल गरीबी घटेगी बल्कि सामाजिक न्याय और सतत विकास का मार्ग भी प्रशस्त होगा।
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