चुनाव सुधार (Electoral Reforms in India)
भारतीय लोकतंत्र की सफलता का आधार है – निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव। लेकिन समय के साथ चुनाव प्रक्रिया में कई कमियाँ और चुनौतियाँ सामने आईं, जैसे – धनबल, बाहुबल, जातिवाद, सांप्रदायिकता आदि। इन्हीं समस्याओं को दूर करने के लिए समय-समय पर चुनाव सुधार (Electoral Reforms) किए गए।
📜 संवैधानिक और कानूनी आधार
- अनुच्छेद 324 – चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की शक्ति।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951 – चुनावों से संबंधित विस्तृत प्रावधान।
- चुनाव सुधार विभिन्न संविधान संशोधनों, न्यायालय के निर्णयों और आयोगों की सिफारिशों से लागू हुए।
🏛️ प्रमुख चुनाव सुधार (स्वतंत्रता के बाद से अब तक)
1. प्रारंभिक सुधार (1950–1980)
- 1950, 1951 के अधिनियम – मतदाता सूची, निर्वाचन क्षेत्र, चुनाव अपराध आदि की व्यवस्था।
- 1961 – उम्मीदवारों के चुनाव खर्च पर नियंत्रण।
- 1975 – इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण केस → सुप्रीम कोर्ट ने निष्पक्ष चुनाव को लोकतंत्र का आधार माना।
2. 1980–2000 के बीच सुधार
- 52वाँ संशोधन (1985) – दलबदल विरोधी कानून लागू (10वीं अनुसूची)।
- 61वाँ संशोधन (1989) – मतदान की न्यूनतम आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष।
- 1996 – अपराधीकरण रोकने हेतु T. N. शेषन के कार्यकाल में बड़े सुधार (आचार संहिता का कड़ाई से पालन)।
3. 2000–2010 के सुधार
- 2002 – उम्मीदवारों को संपत्ति, शैक्षणिक योग्यता और आपराधिक मामलों की जानकारी देना अनिवार्य।
- 2003 – इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का उपयोग सभी चुनावों में।
- 2008 – चुनाव खर्च पर निगरानी के लिए नई व्यवस्थाएँ।
4. 2010 के बाद के सुधार
- 2013 (People’s Union for Civil Liberties केस) – सुप्रीम कोर्ट ने मतदाताओं को "NOTA" (None of the Above) का अधिकार दिया।
- 2017 – इलेक्ट्रोरल बॉन्ड योजना लाई गई (हालाँकि 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित किया)।
- 2019 – वोटर हेल्पलाइन ऐप और डिजिटल मतदाता पहचान पत्र की शुरुआत।
- 2021 – मतदाता सूची को आधार से जोड़ने की अनुमति।
📊 हाल के सुधार (2024–2025 तक)
- दोहरे मतदाता कार्ड की रोकथाम हेतु आधार लिंक अनिवार्य।
- ऑनलाइन नामांकन और मतदाता सूची में सुधार की सुविधा।
- दिव्यांग और वरिष्ठ नागरिकों के लिए घर से मतदान (Postal/Proxy Voting) विकल्प बढ़ाया गया।
- चुनाव आयोग ने 2024 आम चुनाव में AI आधारित निगरानी और EVM ट्रैकिंग सिस्टम का प्रयोग किया।
✅ चुनाव सुधार के लाभ
- चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वसनीयता।
- अपराधीकरण और धनबल पर नियंत्रण।
- मतदान प्रक्रिया अधिक सुलभ और आधुनिक हुई।
- मतदाताओं की भागीदारी और जागरूकता बढ़ी।
⚠️ चुनाव सुधार की चुनौतियाँ
- धनबल और बाहुबल का पूर्ण नियंत्रण अब भी कठिन।
- चुनाव खर्च सीमा का पालन अक्सर नहीं होता।
- जाति और धर्म आधारित ध्रुवीकरण।
- डिजिटल साधनों से जुड़े साइबर जोखिम।
- चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर सवाल।
🌍 भविष्य के लिए आवश्यक सुधार
- चुनाव आयोग को संवैधानिक दर्जे के साथ अधिक शक्तियाँ।
- राजनीतिक दलों की आंतरिक लोकतांत्रिक व्यवस्था अनिवार्य।
- चुनाव में धन के स्रोतों की पूर्ण पारदर्शिता।
- आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकना।
- राज्य वित्त पोषित चुनाव प्रणाली (State Funding of Elections) पर विचार।
- तकनीक का अधिकतम उपयोग – ऑनलाइन वोटिंग, ब्लॉकचेन आधारित वोटिंग।
✨ निष्कर्ष
चुनाव सुधार भारतीय लोकतंत्र की आत्मा को जीवित रखने के लिए अनिवार्य हैं। समय-समय पर किए गए सुधारों ने भारतीय चुनाव प्रणाली को दुनिया में सबसे बड़े और जटिल लोकतांत्रिक तंत्र के रूप में स्थापित किया है। परंतु अभी भी अपराधीकरण, धनबल और ध्रुवीकरण जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए और गहन सुधारों की आवश्यकता है।
 
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