आपातकाल (Emergency) 1975

 आपातकाल (Emergency) 1975

भारतीय लोकतंत्र का सबसे विवादास्पद अध्याय

प्रस्तावना(Introduction)

भारतीय लोकतंत्र का इतिहास कई उतार-चढ़ावों से गुज़रा है, लेकिन सबसे बड़ा और विवादास्पद मोड़ था 1975 का आपातकाल (Emergency)। 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की। इसे भारतीय राजनीति का “काला अध्याय” कहा जाता है क्योंकि इस दौरान लोकतांत्रिक संस्थाएँ, प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकार लगभग समाप्त हो गए।


आपातकाल की पृष्ठभूमि

आपातकाल की घोषणा अचानक नहीं हुई, बल्कि इसके पीछे कई कारण थे –

राजनीतिक अस्थिरता

1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने भारी जीत दर्ज की थी।
लेकिन समय के साथ जनता में बेरोज़गारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ असंतोष बढ़ने लगा।

अल्लाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

12 जून 1975 को अल्लाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया और उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी।
इस फैसले से उनकी प्रधानमंत्री की कुर्सी खतरे में पड़ गई।

जेपी आंदोलन

समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने छात्रों और युवाओं के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन चलाया।
इसमें जनता का भारी समर्थन मिला, जिससे सरकार पर दबाव और बढ़ा।

आंतरिक असंतोष

विभिन्न राज्यों में हड़तालें, प्रदर्शन और अशांति की स्थिति थी।
इंदिरा गांधी ने इसे देश की स्थिरता और सुरक्षा के लिए खतरा बताया।


आपातकाल की घोषणा

  • 25 जून 1975 की रात राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने इंदिरा गांधी की सिफारिश पर अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की।
  • इसका कारण बताया गया – “आंतरिक अशांति (Internal Disturbance)।”


आपातकाल के दौरान उठाए गए कदम

1. नागरिक अधिकारों का निलंबन

संविधान के मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) निलंबित कर दिए गए।
अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) पर सबसे अधिक असर पड़ा।

2. प्रेस सेंसरशिप

सभी अखबारों पर कड़ी सेंसरशिप लगाई गई।
सरकार की आलोचना करने वाली खबरें प्रकाशित करना प्रतिबंधित कर दिया गया।

3. विपक्ष और आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी

हजारों विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल दिया गया।
जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई जैसे बड़े नेता गिरफ्तार किए गए।

4. प्रशासनिक सख्ती

विभिन्न राज्यों में कड़े कानून लागू हुए।
हड़तालें, प्रदर्शन और सभाएँ प्रतिबंधित कर दी गईं।

5. विवादास्पद नीतियाँ

इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने “5 सूत्रीय कार्यक्रम” चलाया, जिसमें सबसे विवादास्पद था जबर्दस्ती नसबंदी अभियान।
इससे जनता में गहरा आक्रोश फैल गया।

आपातकाल का असर

  1. लोकतंत्र पर आघात – जनता के अधिकार छिन गए और लोकतांत्रिक संस्थाएँ कमजोर हो गईं।
  2. राजनीतिक असंतोष – जनता के बीच सरकार के प्रति गुस्सा और अविश्वास बढ़ा।
  3. विकास और अनुशासन – कुछ लोग मानते हैं कि इस दौरान कामकाज में तेजी आई और प्रशासनिक अनुशासन मजबूत हुआ।
  4. जनता का विद्रोह – आपातकाल के अंत में जब चुनाव हुए, तो जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया।


आपातकाल का अंत

  • जनवरी 1977 में इंदिरा गांधी ने अचानक आपातकाल समाप्त करने और चुनाव कराने की घोषणा की।
  • मार्च 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस को भारी हार मिली और जनता पार्टी की सरकार बनी।
  • यह पहली बार था जब कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर हुई।


आपातकाल की विरासत

  • आपातकाल ने भारतीय लोकतंत्र को एक गहरा सबक दिया।
  • इसके बाद संविधान में संशोधन करके आपातकाल लगाने की प्रक्रिया को और कठिन बना दिया गया।
  • आज भी 1975-77 का आपातकाल भारतीय राजनीति में लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक स्वतंत्रता के महत्व की याद दिलाता है।


निष्कर्ष

1975 का आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का सबसे विवादास्पद और शिक्षाप्रद काल था।
इसने दिखा दिया कि लोकतंत्र की रक्षा केवल संविधान से नहीं, बल्कि जनता की जागरूकता और राजनीतिक संतुलन से होती है।

भारत की जनता ने 1977 के चुनाव में यह साबित कर दिया कि वह अपने अधिकारों से समझौता नहीं करेगी। यही भारत के लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है।



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