पर्यावरणीय न्याय और विकास
Environmental Justice and Development
परिचय
पर्यावरणीय न्याय (Environmental Justice) का तात्पर्य है कि सभी लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण में रहने का समान अधिकार मिले। यह सिद्धांत समान अवसर, संसाधनों का न्यायपूर्ण वितरण और पर्यावरणीय दुष्प्रभावों से सुरक्षा पर आधारित है। विकास के दौरान अक्सर सामाजिक और पर्यावरणीय असमानताएँ पैदा होती हैं। इसलिए, सतत और न्यायसंगत विकास सुनिश्चित करना आवश्यक है, ताकि पर्यावरणीय न्याय और आर्थिक विकास दोनों संतुलित रहें।
1. पर्यावरणीय न्याय की अवधारणा
यह सिद्धांत कहता है कि गरीब और वंचित वर्गों को पर्यावरणीय नुकसान का अधिक बोझ नहीं उठाना चाहिए।इसमें शामिल हैं:
- प्रदूषण और प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा।
- स्वच्छ जल, हवा और भूमि तक समान पहुंच।
- प्राकृतिक संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग और संरक्षण।
2. विकास और पर्यावरणीय असंतुलन
प्रमुख समस्याएँ
- औद्योगिकीकरण और शहरीकरण – वनों और जल स्रोतों का विनाश।
- अत्यधिक संसाधन दोहन – खनिज, जल और ऊर्जा का असंतुलित उपयोग।
- कृषि और जलवायु परिवर्तन – जल संकट, मृदा कटाव और जैव विविधता में कमी।
- गरीब और आदिवासी समुदायों पर प्रभाव – प्रदूषण और विस्थापन का अधिक बोझ।
उदाहरण
- बड़े बांध परियोजनाएँ और खनन प्रोजेक्ट्स अक्सर स्थानीय समुदायों को विस्थापित करते हैं।
- औद्योगिक प्रदूषण से स्वास्थ्य और कृषि प्रभावित होती है।
3. पर्यावरणीय न्याय और सतत विकास का संबंध
- सतत विकास सुनिश्चित करता है कि आर्थिक प्रगति पर्यावरण और समाज के लिए हानिकारक न हो।
- न्यायसंगत विकास में सभी वर्गों को संसाधनों और पर्यावरणीय लाभों तक समान पहुंच मिलती है।
- इसका लक्ष्य है सतत आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और पर्यावरणीय संरक्षण का संतुलन।
4. पर्यावरणीय न्याय सुनिश्चित करने के उपाय
कानूनी उपाय
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986वन अधिनियम और जल संरक्षण कानून
सामुदायिक भागीदारी
पारिस्थितिकीय प्रबंधन में जन सहभागिता।
शिक्षा और जागरूकता
पर्यावरणीय न्याय और सतत विकास के महत्व पर शिक्षा।प्रौद्योगिकी और नवाचार
प्रदूषण और अपशिष्ट प्रबंधन।
निष्कर्ष
पर्यावरणीय न्याय और विकास एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। न्यायसंगत और सतत विकास न केवल संसाधनों और पर्यावरण की सुरक्षा करता है, बल्कि गरीब और वंचित वर्गों के जीवन की गुणवत्ता भी सुनिश्चित करता है। इसके लिए कानून, सामुदायिक भागीदारी, शिक्षा और तकनीकी उपायों का संयोजन आवश्यक है। यदि इसे अपनाया जाए तो आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संतुलन दोनों सुनिश्चित किए जा सकते हैं।
 
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