कृषि क्षेत्र की समस्याएँ और सुधार
भारत की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि क्षेत्र है। लगभग 65% जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता और निर्यात क्षमता के बावजूद भारतीय कृषि आज भी अनेक समस्याओं से जूझ रही है। इन समस्याओं का समाधान करके ही हम किसानों की आय दोगुनी करने और ग्रामीण विकास का सपना साकार कर सकते हैं।
भारतीय कृषि क्षेत्र की मुख्य समस्याएँ
1. भूमि संबंधी समस्याएँ
- भूमि जोतों का अत्यधिक विखंडन।
- असमान भूमि वितरण और भूमिहीन किसानों की संख्या अधिक।
- कृषि योग्य भूमि का निर्माण और औद्योगिकीकरण में उपयोग।
2. सिंचाई और जल प्रबंधन की समस्या
- कृषि का अधिकांश हिस्सा मानसूनी वर्षा पर निर्भर।
- कई राज्यों में जल संकट और भूजल का अत्यधिक दोहन।
- नहर सिंचाई की असमान उपलब्धता।
3. कृषि तकनीक और उपकरणों की कमी
- अधिकांश किसान पारंपरिक तकनीक का प्रयोग करते हैं।
- ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, ड्रिप इरिगेशन जैसी सुविधाओं की कमी।
- यंत्रीकरण का असमान विकास, विशेषकर छोटे किसानों में।
4. उर्वरक और बीज समस्या
- उच्च गुणवत्ता वाले बीज और उर्वरक की कमी।
- किसान अत्यधिक रासायनिक खाद और कीटनाशक का प्रयोग करते हैं जिससे मिट्टी की उर्वरता घटती है।
5. विपणन और मूल्य निर्धारण की समस्या
- किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता।
- बिचौलियों के कारण किसान शोषण का शिकार।
- MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का लाभ सभी किसानों तक नहीं पहुँचता।
6. ऋण और वित्तीय समस्या
- किसान महाजनों और साहूकारों से उच्च ब्याज पर ऋण लेने को मजबूर।
- बैंकों से समय पर ऋण प्राप्त करने में कठिनाई।
7. प्राकृतिक आपदाएँ
- सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि और कीट प्रकोप से फसलों का नुकसान।
- फसल बीमा योजना का प्रभावी क्रियान्वयन न होना।
8. किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति
- छोटे और सीमांत किसानों की संख्या अधिक।
- शिक्षा और जागरूकता की कमी।
- आत्महत्या और प्रवासन जैसी समस्याएँ।
भारतीय कृषि क्षेत्र में सुधार के उपाय
1. भूमि सुधार
- भूमिहीन किसानों को भूमि वितरण।
- सहकारी खेती और भूमि जोतों का एकीकरण।
- भूमि का उचित उपयोग और मृदा संरक्षण उपाय।
2. सिंचाई सुविधाओं का विकास
- ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई को बढ़ावा।
- नहरों और तालाबों का पुनर्जीवन।
- वर्षा जल संचयन और भूजल पुनर्भरण।
3. आधुनिक तकनीक का प्रयोग
- किसानों को यंत्रीकरण और आधुनिक कृषि उपकरण उपलब्ध कराना।
- स्मार्ट कृषि और डिजिटल खेती का प्रसार।
- सौर ऊर्जा और ड्रोन तकनीक का उपयोग।
4. उच्च गुणवत्ता वाले बीज और उर्वरक
- हाइब्रिड और जैविक बीजों का वितरण।
- संतुलित और जैविक खाद का प्रयोग।
- जैव कीटनाशक का प्रचलन।
5. विपणन सुधार
- ई-नाम (e-NAM) और ऑनलाइन कृषि बाजार का विस्तार।
- किसानों को प्रत्यक्ष बाजार पहुँच।
- MSP व्यवस्था को अधिक पारदर्शी बनाना।
6. ऋण और बीमा सुविधा
- किसानों के लिए आसान ब्याज दर पर ऋण।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का प्रभावी कार्यान्वयन।
- सहकारी बैंकों और ग्रामीण बैंकों की सुलभता।
7. अनुसंधान और शिक्षा
- कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि विज्ञान केंद्रों का विस्तार।
- किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड योजना का प्रभावी प्रयोग।
8. फसल विविधिकरण और मूल्य संवर्धन
- धान-गेहूँ पर निर्भरता कम करके फल, सब्जी, दलहन और तिलहन की खेती।
- कृषि आधारित उद्योगों (डेयरी, मत्स्य, खाद्य प्रसंस्करण) को प्रोत्साहन।
- कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउस की स्थापना।
निष्कर्ष
भारतीय कृषि की समस्याएँ गहरी और जटिल हैं, लेकिन यदि भूमि सुधार, सिंचाई प्रबंधन, आधुनिक तकनीक, किसानों की शिक्षा और बाजार सुधार को प्राथमिकता दी जाए तो कृषि क्षेत्र नई ऊँचाइयाँ प्राप्त कर सकता है। कृषि केवल खाद्यान्न उत्पादन का साधन नहीं बल्कि आर्थिक विकास, रोजगार और खाद्य सुरक्षा का भी मूल स्तंभ है।
 
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