स्वतंत्रता के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था(Economy After Freedom)

 स्वतंत्रता के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में परिवर्तन

भारत ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त की। स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था गरीबी, बेरोजगारी, कृषि पर अत्यधिक निर्भरता, औद्योगिक पिछड़ेपन और विदेशी शोषण से ग्रसित थी। ब्रिटिश शासन ने भारत को आर्थिक दृष्टि से कमजोर बना दिया था। ऐसे में स्वतंत्रता के बाद देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी – आर्थिक पुनर्निर्माण और विकास की नई राह। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि स्वतंत्रता के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में किस प्रकार परिवर्तन हुए और आज तक किन-किन चरणों से होकर यह गुज़री।


प्रारंभिक चुनौतियाँ (1947–1950)

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की अर्थव्यवस्था बेहद दयनीय स्थिति में थी।

  • प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी।
  • औद्योगिक विकास नगण्य था।
  • लगभग 70% से अधिक जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी।
  • भारी गरीबी और बेरोजगारी व्याप्त थी।
  • विभाजन के कारण उत्पादन, बाजार और संसाधनों को भारी क्षति पहुँची।


योजनाबद्ध विकास का आरंभ

पंचवर्षीय योजनाएँ

1951 से भारत में योजनाबद्ध आर्थिक विकास का दौर शुरू हुआ।

  • पहली पंचवर्षीय योजना (1951–56) में कृषि और सिंचाई को प्राथमिकता दी गई।
  • दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956–61) में औद्योगिकीकरण और भारी उद्योगों पर जोर दिया गया।
  • इसके बाद की योजनाओं में संतुलित विकास पर ध्यान दिया गया।

मिश्रित अर्थव्यवस्था

भारत ने समाजवाद और पूँजीवाद का मिश्रण अपनाया। सार्वजनिक क्षेत्र (PSU) को प्रमुख भूमिका दी गई, वहीं निजी क्षेत्र को भी नियंत्रित ढाँचे में प्रोत्साहन मिला।


कृषि क्षेत्र में परिवर्तन

हरित क्रांति

1960 के दशक में खाद्यान्न संकट से निपटने के लिए हरित क्रांति लाई गई।

  • उच्च उपज वाली किस्में (HYV seeds), उर्वरक, कीटनाशक और सिंचाई के विस्तार से उत्पादन में वृद्धि हुई।
  • पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश कृषि उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र बने।
  • भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया।

श्वेत और नीली क्रांति

  • श्वेत क्रांति ने दुग्ध उत्पादन बढ़ाया और अमूल जैसे सहकारी मॉडल को सफल बनाया।
  • नीली क्रांति ने मछली पालन को प्रोत्साहन दिया।


औद्योगिक क्षेत्र में परिवर्तन

सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार

  • भारी उद्योग, इस्पात संयंत्र, कोयला, बिजली, परिवहन, बैंकिंग और बीमा क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र को बढ़ावा मिला।
  • इसने रोजगार और बुनियादी ढाँचे के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

निजी क्षेत्र की भूमिका

हालाँकि शुरूआती दशकों में निजी क्षेत्र पर कई प्रतिबंध थे, लेकिन धीरे-धीरे इसकी भूमिका बढ़ी और यह उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं में सक्रिय हुआ।


1991 के बाद का आर्थिक उदारीकरण

नई आर्थिक नीति (1991)

1991 में भारत ने गंभीर भुगतान संतुलन संकट का सामना किया। इससे उबरने के लिए भारत ने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) की नीति अपनाई।

  • विदेशी निवेश (FDI) के द्वार खोले गए।
  • लाइसेंस-परमिट-कोटा राज खत्म किया गया।
  • कई सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण किया गया।
  • भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) का सदस्य बना।

परिणाम

  • सेवा क्षेत्र (आईटी, बीपीओ, दूरसंचार) का तेज़ विकास हुआ।
  • विदेशी निवेश और विदेशी मुद्रा भंडार बढ़े।
  • भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ गया।


समकालीन परिवर्तन (2000 के बाद)

आईटी और सेवा क्षेत्र का उभार

  • भारत वैश्विक आईटी हब के रूप में उभरा।
  • बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे और गुरुग्राम जैसे शहर टेक्नोलॉजी और स्टार्टअप केंद्र बने।

आधारभूत संरचना का विकास

  • सड़क, मेट्रो, रेल, हवाई अड्डे और डिजिटल नेटवर्क का तीव्र विस्तार हुआ।
  • मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं ने औद्योगिक और उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया।

सामाजिक क्षेत्र में सुधार

  • शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास में निवेश बढ़ा।
  • मनरेगा जैसी योजनाओं ने ग्रामीण रोजगार को मज़बूत किया।


स्वतंत्रता के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की उपलब्धियाँ

  1. खाद्यान्न आत्मनिर्भरता प्राप्त की।
  2. विविधीकृत औद्योगिक आधार विकसित किया।
  3. सेवा क्षेत्र ने वैश्विक पहचान बनाई।
  4. विदेशी मुद्रा भंडार और निर्यात में वृद्धि हुई।
  5. गरीबी दर में धीरे-धीरे कमी आई।


शेष चुनौतियाँ

  1. गरीबी और बेरोजगारी – अभी भी बड़ी आबादी इन समस्याओं से जूझ रही है।
  2. ग्रामीण-शहरी असमानता – विकास का लाभ समान रूप से नहीं बँटा।
  3. पर्यावरणीय संकट – औद्योगिकीकरण और कृषि रसायनों से प्रदूषण और संसाधनों का ह्रास हुआ।
  4. आर्थिक असमानता – अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ी।


निष्कर्ष

स्वतंत्रता के बाद भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को गहरे संकट से निकालकर विकास की राह पर अग्रसर किया। योजनाबद्ध विकास, हरित क्रांति, औद्योगीकरण और आर्थिक उदारीकरण ने भारत को एक तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था बना दिया। हालाँकि चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं, लेकिन भारत अब विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है और भविष्य में वैश्विक शक्ति बनने की क्षमता रखता है।



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