भारतीय मुद्रा प्रणाली(Indian Monetary System)
मुद्रा आपूर्ति और महंगाई
प्रस्तावना
भारत जैसे विकासशील देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रणाली अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मुद्रा ही वह साधन है जिसके माध्यम से लेन-देन, बचत, निवेश और आर्थिक विकास संभव हो पाता है। मुद्रा प्रणाली केवल कागज़ी नोट या सिक्कों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें डिजिटल मुद्रा, क्रेडिट, और बैंकिंग प्रणाली भी शामिल है।
इसके साथ ही, अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति (Money Supply) और महंगाई (Inflation) के बीच गहरा संबंध है। यदि मुद्रा की आपूर्ति संतुलित है तो अर्थव्यवस्था स्थिर रहती है, लेकिन असंतुलन की स्थिति में महंगाई या मंदी उत्पन्न हो जाती है।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे — भारतीय मुद्रा प्रणाली क्या है, मुद्रा आपूर्ति के प्रकार, महंगाई की स्थिति और इनके बीच का आपसी संबंध।
भारतीय मुद्रा प्रणाली
परिभाषा
मुद्रा प्रणाली वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत किसी राष्ट्र में मुद्रा का निर्गमन, प्रचलन और नियंत्रण किया जाता है। भारत में यह कार्य भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा किया जाता है।
भारतीय मुद्रा प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ
- नियंत्रित और प्रबंधित प्रणाली – भारत में मुद्रा का निर्गमन केवल RBI के नियंत्रण में होता है।
- द्वादश अधिनियम आधारित प्रणाली – मुद्रा संबंधी सभी प्रावधान भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 और भारतीय सिक्के अधिनियम, 2011 पर आधारित हैं।
- द्विस्तरीय मुद्रा – इसमें सिक्के और कागज़ी नोट दोनों शामिल हैं।
- कानूनी निविदा (Legal Tender) – भारतीय रुपया ही भारत की वैध मुद्रा है।
- डिजिटल रूपांतरण – हाल के वर्षों में मुद्रा प्रणाली में UPI, डिजिटल वॉलेट, और CBDC (Central Bank Digital Currency) जैसे आधुनिक साधन भी शामिल हुए हैं।
मुद्रा के प्रकार
- धातु मुद्रा (Metallic Money) – सिक्के
- कागज़ी मुद्रा (Paper Money) – नोट
- क्रेडिट मुद्रा (Credit Money) – चेक, डेबिट/क्रेडिट कार्ड
- डिजिटल मुद्रा (Digital Currency) – UPI, वॉलेट, CBDC
मुद्रा आपूर्ति (Money Supply)
परिभाषा
मुद्रा आपूर्ति से तात्पर्य है, किसी देश की अर्थव्यवस्था में एक निश्चित समय पर उपलब्ध कुल मुद्रा। इसमें नकदी, बैंक जमा, और क्रेडिट मुद्रा शामिल होती है।
मुद्रा आपूर्ति के मापदंड (Measures of Money Supply)
भारतीय रिज़र्व बैंक ने मुद्रा आपूर्ति को चार प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया है:
M1 (संकुचित मुद्रा आपूर्ति)
प्रचलन में नकदी (Currency in Circulation)माँग जमा (Demand Deposits)
अन्य निकासी योग्य जमा
M2
M1 + बचत जमा (Savings Deposits)M3 (व्यापक मुद्रा आपूर्ति)
इसे अक्सर सकल मुद्रा आपूर्ति (Broad Money Supply) भी कहा जाता है।
M4
M3 + सहकारी बैंकों की जमामुद्रा आपूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक
- मौद्रिक नीति (Monetary Policy)
- राजकोषीय नीति (Fiscal Policy)
- बैंकिंग प्रणाली
- अंतरराष्ट्रीय व्यापार और विदेशी पूंजी प्रवाह
- जनसंख्या और आर्थिक गतिविधियाँ
महंगाई (Inflation)
परिभाषा
महंगाई वह स्थिति है जब किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के सामान्य मूल्य स्तर (General Price Level) में निरंतर वृद्धि होती है।
महंगाई के प्रमुख प्रकार
मांग-आधारित महंगाई (Demand Pull Inflation)
जब माँग आपूर्ति से अधिक हो जाती है।लागत-आधारित महंगाई (Cost Push Inflation)
जब उत्पादन लागत बढ़ने के कारण कीमतें बढ़ती हैं।आयातित महंगाई (Imported Inflation)
जब विदेश से आयात की जाने वाली वस्तुएँ महंगी हो जाती हैं।संरचनात्मक महंगाई (Structural Inflation)
जब अर्थव्यवस्था की संरचना में असंतुलन होता है, जैसे कृषि और उद्योग के बीच।महंगाई को मापने के प्रमुख सूचकांक
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)
- थोक मूल्य सूचकांक (WPI)
- GDP Deflator
मुद्रा आपूर्ति और महंगाई का संबंध
- जब मुद्रा आपूर्ति बढ़ती है और उत्पादन उसी अनुपात में नहीं बढ़ता, तो महंगाई बढ़ जाती है।
- यदि मुद्रा आपूर्ति कम होती है, तो मांग घटती है और इससे मंदी (Recession) जैसी स्थिति पैदा हो सकती है।
- इसीलिए, RBI मौद्रिक नीति के माध्यम से मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करता है।
भारतीय संदर्भ में महंगाई और मुद्रा आपूर्ति
RBI की भूमिका –
महंगाई का प्रभाव –
- गरीब और मध्यम वर्ग पर बोझ
- बचत दर में कमी
- निवेश और उत्पादन पर असर
सरकारी कदम –
- मूल्य नियंत्रण और सब्सिडी योजनाएँ
- आयात-निर्यात नीतियाँ
- कृषि और औद्योगिक उत्पादन को प्रोत्साहन
चुनौतियाँ
- काला धन और नकदी लेन-देन
- वैश्विक मूल्य अस्थिरता (Global Price Volatility)
- तेज़ जनसंख्या वृद्धि
- तकनीकी एवं डिजिटल मुद्रा का नियमन
निष्कर्ष
भारतीय अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रणाली, मुद्रा आपूर्ति और महंगाई आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं। संतुलित मुद्रा आपूर्ति से अर्थव्यवस्था स्थिर और प्रगतिशील रहती है, जबकि असंतुलन महंगाई या मंदी को जन्म देता है।
भारतीय रिज़र्व बैंक इस संतुलन को बनाए रखने के लिए लगातार मौद्रिक नीति और नियामक उपाय अपनाता है। आधुनिक युग में जब डिजिटल मुद्रा और वैश्विक व्यापार का महत्व बढ़ गया है, तब यह और भी आवश्यक हो गया है कि भारत एक लचीली, पारदर्शी और स्थिर मुद्रा प्रणाली को अपनाए।
 
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