जलोढ़ मृदा(Alluvial Soil)
निर्माण, वितरण और कृषि महत्व
परिचय
जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil) भारत की सबसे उपजाऊ और व्यापक रूप से फैली हुई मृदाओं में से एक है। यह मुख्यतः नदियों द्वारा लाई गई गाद, बालू, चिकनी मिट्टी और खनिजों के मिश्रण से बनी होती है। इसकी उच्च उर्वरता और अनुकूल संरचना इसे लगभग हर प्रकार की खेती के लिए उपयुक्त बनाती है।
जलोढ़ मृदा का निर्माण
नदीय अपवाह और निक्षेपण
जलोढ़ मृदा का निर्माण नदियों द्वारा बहाकर लाए गए अवसादों के निक्षेपण से होता है। जब नदियाँ हिमालय और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों से निकलकर मैदानों में आती हैं, तो वे अपने साथ चट्टानों और मिट्टी के कण लाती हैं और इन्हें मैदानों में जमा करती हैं।
मुख्य स्रोत
- हिमालयी नदियाँ: गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु
- प्रायद्वीपीय नदियाँ: गोदावरी, कृष्णा, कावेरी
जलोढ़ मृदा की विशेषताएँ
रंग और बनावट
- रंग हल्का धूसर से लेकर हल्का पीला या भूरा
- बनावट रेतीली दोमट से लेकर चिकनी दोमट तक
खनिज संरचना
- पोटाश और फास्फोरस की उचित मात्रा
- नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थ की अपेक्षाकृत कमी
- कैल्शियम और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपस्थिति
नमी धारण क्षमता
दोमट संरचना के कारण इसमें जल और वायु का संतुलित प्रवाह होता है, जिससे फसलें तेजी से बढ़ती हैं।
भारत में जलोढ़ मृदा का वितरण
मुख्य क्षेत्र
- उत्तर भारत के मैदान: पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल
- पूर्वोत्तर भारत: असम और ब्रह्मपुत्र घाटी
- तटीय क्षेत्र: गोदावरी, कृष्णा और कावेरी डेल्टा
जलोढ़ मृदा के प्रकार
भंगर मृदा
पुरानी जलोढ़ मृदा, जो ऊँचे मैदानों पर पाई जाती है और अपेक्षाकृत कम उपजाऊ होती है।
खादर मृदा
नई जलोढ़ मृदा, जो नदी के किनारे पाई जाती है और अधिक उपजाऊ होती है।
कृषि में जलोढ़ मृदा का महत्व
उपयुक्त फसलें
- गेहूं
- धान
- गन्ना
- मक्का
- दलहन
- सब्जियाँ
- फल जैसे केला, पपीता, आम
उच्च उत्पादकता
इसकी ढीली बनावट, उपजाऊपन और नमी धारण क्षमता इसे भारत की खाद्यान्न उत्पादन में सबसे महत्वपूर्ण बनाती है।
जलोढ़ मृदा की समस्याएँ
पोषक तत्वों की कमी
समय के साथ निरंतर खेती से नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थ की कमी हो सकती है।
बाढ़ से कटाव
नदी किनारे की जलोढ़ मृदा बाढ़ के समय क्षरण का शिकार होती है।
जलोढ़ मृदा का संरक्षण और सुधार
जैविक खाद और फसल चक्र
गोबर की खाद, हरी खाद और दलहनी फसलों के चक्र से इसकी उर्वरता बनी रहती है।
मृदा क्षरण नियंत्रण
बांध, चेक डैम और वृक्षारोपण द्वारा मृदा कटाव को रोका जा सकता है।
निष्कर्ष
जलोढ़ मृदा भारत के कृषि उत्पादन की रीढ़ है। यह देश की खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाती है। सही मृदा प्रबंधन और सिंचाई प्रणाली के साथ इसकी उत्पादकता को लंबे समय तक बनाए रखा जा सकता है।
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