भारत में कृषि के प्रकार

 भारत में कृषि के प्रकार

परिचय

भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ लगभग 60% से अधिक आबादी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करती है। यहाँ की विविध जलवायु, मृदा, वर्षा और भौगोलिक परिस्थितियाँ विभिन्न प्रकार की कृषि को जन्म देती हैं। भारत में कृषि केवल अन्न उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवनयापन, अर्थव्यवस्था और संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा है।


भारत में कृषि के प्रमुख प्रकार

1. आत्मनिर्भर कृषि (Subsistence Farming)

  • विशेषता – किसान अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खेती करते हैं।
  • आधुनिक उपकरणों का प्रयोग कम, पारंपरिक तकनीक अधिक।
  • छोटे खेत, कम उत्पादकता।
  • क्षेत्र – बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा।
  • मुख्य फसलें – धान, गेहूँ, मक्का, दालें।


2. व्यावसायिक कृषि (Commercial Farming)

  • विशेषता – फसलें बाज़ार और उद्योगों में बेचने के उद्देश्य से उगाई जाती हैं।
  • उर्वरक, कीटनाशक और मशीनों का प्रयोग अधिक।
  • बड़े खेत और उच्च उत्पादकता।
  • क्षेत्र – पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश।
  • मुख्य फसलें – गन्ना, कपास, चाय, कॉफी, तंबाकू।


3. मिश्रित कृषि (Mixed Farming)

  • विशेषता – कृषि और पशुपालन का संयोजन।
  • किसान खेती के साथ-साथ गाय, भैंस, भेड़ और बकरी पालते हैं।
  • क्षेत्र – हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश।
  • फायदा – किसान को अतिरिक्त आय और खाद्य सुरक्षा मिलती है।


4. स्थानांतरण कृषि (Shifting Cultivation / झूम खेती)

  • विशेषता – जंगल काटकर और जलाकर अस्थायी खेती करना।
  • कुछ वर्ष बाद भूमि की उर्वरता घटने पर नया क्षेत्र चुना जाता है।
  • क्षेत्र – उत्तर-पूर्व भारत (असम, नागालैंड, मिज़ोरम, मणिपुर, त्रिपुरा)।
  • मुख्य फसलें – बाजरा, मक्का, सब्ज़ियाँ।
  • नोट – पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने से अब यह कम होती जा रही है।


5. सिंचाई आधारित कृषि (Irrigated Farming)

  • विशेषता – नहरों, ट्यूबवेल, कुओं और पंपों से सिंचाई।
  • वर्षा पर निर्भरता कम।
  • क्षेत्र – पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान (इंदिरा गाँधी नहर)।
  • मुख्य फसलें – गेहूँ, धान, गन्ना, सब्ज़ियाँ।


6. बरानी कृषि (Rainfed Farming)

  • विशेषता – वर्षा आधारित खेती, सिंचाई साधन नहीं।
  • सूखे की संभावना अधिक, उत्पादकता कम।
  • क्षेत्र – मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, राजस्थान।
  • मुख्य फसलें – बाजरा, ज्वार, दालें।


7. बागवानी कृषि (Horticulture Farming)

  • विशेषता – फलों, सब्ज़ियों, फूलों और औषधीय पौधों की खेती।
  • क्षेत्र – महाराष्ट्र (संतरा), हिमाचल प्रदेश (सेब), कर्नाटक (केला), तमिलनाडु (अंगूर)।
  • महत्त्व – निर्यात और उच्च आय के लिए प्रसिद्ध।


8. प्लांटेशन कृषि (Plantation Farming)

  • विशेषता – बड़े भू-भाग पर नकदी फसलों की एकल खेती।
  • आधुनिक तकनीक और श्रम-प्रधान।
  • क्षेत्र – असम (चाय), कर्नाटक और केरल (कॉफी, रबर), तमिलनाडु (चाय)।
  • मुख्य फसलें – चाय, कॉफी, रबर, नारियल।


9. जैविक कृषि (Organic Farming)

  • विशेषता – रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का प्रयोग न करके जैविक खाद और प्राकृतिक तरीकों से खेती।
  • स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए लाभकारी।
  • क्षेत्र – सिक्किम (भारत का पहला पूर्णत: जैविक राज्य), केरल, महाराष्ट्र।


सारणी : भारत में कृषि के प्रकार और विशेषताएँ

कृषि का प्रकार क्षेत्र विशेषताएँ मुख्य फसलें
आत्मनिर्भर कृषि बिहार, उ.प्र. छोटे खेत, पारंपरिक तकनीक धान, गेहूँ
व्यावसायिक कृषि पंजाब, हरियाणा बाज़ार उन्मुख, मशीनों का प्रयोग गन्ना, कपास
मिश्रित कृषि हरियाणा, पंजाब खेती + पशुपालन गेहूँ, दूध
झूम खेती पूर्वोत्तर भारत जंगल काटकर खेती मक्का, बाजरा
सिंचाई आधारित पंजाब, राजस्थान नहर और ट्यूबवेल सिंचाई गेहूँ, धान
बरानी कृषि मध्य भारत, राजस्थान वर्षा पर आधारित बाजरा, ज्वार
बागवानी कृषि महाराष्ट्र, हिमाचल फल और सब्ज़ियाँ सेब, केला
प्लांटेशन कृषि असम, केरल बड़े क्षेत्र, नकदी फसल चाय, कॉफी
जैविक कृषि सिक्किम, केरल बिना रसायन, पर्यावरण हितैषी धान, सब्ज़ियाँ

कृषि का महत्व

  1. अर्थव्यवस्था – GDP और निर्यात में योगदान।
  2. रोज़गार – ग्रामीण भारत की अधिकांश आबादी की जीविका।
  3. खाद्य सुरक्षा – अनाज, सब्ज़ी और फल की आपूर्ति।
  4. उद्योग – कपड़ा, चीनी, खाद्य प्रसंस्करण आदि उद्योग कृषि पर आधारित।
  5. संस्कृति – त्योहार और परंपराएँ खेती से जुड़ी हुई हैं।


चुनौतियाँ

  • छोटे और बिखरे हुए खेत।
  • जलवायु परिवर्तन और अनिश्चित वर्षा।
  • मृदा अपरदन और उर्वरता की कमी।
  • रासायनिक उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भरता।
  • किसानों की आर्थिक कठिनाइयाँ।


समाधान

  • आधुनिक तकनीक और यंत्रीकरण।
  • सिंचाई और जल संरक्षण।
  • जैविक और सतत कृषि का प्रोत्साहन।
  • फसल बीमा और न्यूनतम समर्थन मूल्य।
  • किसान शिक्षा और प्रशिक्षण।


निष्कर्ष

भारत की कृषि विविध और बहुआयामी है। आत्मनिर्भर कृषि से लेकर आधुनिक व्यावसायिक कृषि और जैविक खेती तक, यहाँ के किसान अपनी परिस्थितियों के अनुसार खेती करते हैं। यदि वैज्ञानिक तकनीकों और सतत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दिया जाए तो भारत की कृषि न केवल किसानों को समृद्ध बनाएगी बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और आर्थिक प्रगति का आधार भी बनेगी।



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