मध्यकालीन भारतीय अर्थव्यवस्था
कृषि, व्यापार और प्रशासन का समन्वित तंत्र
परिचय: मध्यकालीन भारत की आर्थिक संरचना
मध्यकालीन भारतीय अर्थव्यवस्था (8वीं से 18वीं शताब्दी) में भारत की आर्थिक व्यवस्था ने नए रूप और स्वरूप ग्रहण किए। इस काल में कृषि उत्पादन, हस्तशिल्प उद्योग, व्यापार मार्गों और कर प्रणाली में बड़े बदलाव हुए। दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य के शासनकाल में केंद्रीकृत प्रशासन, भूमि राजस्व व्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ने अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी।
कृषि: आर्थिक जीवन का आधार
मध्यकालीन भारत की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित थी।
- मुख्य फसलें – गेहूँ, धान, जौ, बाजरा, गन्ना, कपास, दालें और मसाले।
- सिंचाई साधन – नहरें, तालाब, कुएँ, रहट और पर्सियन व्हील (अरघट्टा)।
- भूमि व्यवस्था – ज़मींदार और मुजऱियों के माध्यम से कर वसूली।
- मुगल काल में ज़ब्त प्रणाली और दशमलव पद्धति द्वारा भूमि का माप और कर निर्धारण किया गया।
- कृषि में नवीनता – बागवानी, नकदी फसलों और बाग-बगीचों का विकास।
हस्तशिल्प और उद्योग
मध्यकालीन भारत के हस्तशिल्प उद्योग विश्व प्रसिद्ध थे।
- कपड़ा उद्योग – बंगाल की मलमल, गुजरात का पटोला, काशी के रेशमी वस्त्र, दक्कन का मुसलिन।
- धातु उद्योग – हथियार, आभूषण, ताँबे और पीतल के बर्तन।
- कारीगरी – संगमरमर की नक्काशी, काँच और पत्थर के शिल्प, लकड़ी का काम।
- जहाज निर्माण – सूरत, मछलीपट्टनम और होगली बंदरगाह पर।
व्यापार और वाणिज्य
आंतरिक व्यापार
- ग्रामीण और शहरी बाज़ारों का जाल।
- साप्ताहिक हाट और वार्षिक मेलों का आयोजन।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
- प्रमुख निर्यात – मसाले, कपड़ा, रत्न, मोती, चीनी मिट्टी के बर्तन।
- प्रमुख आयात – घोड़े, विलासिता की वस्तुएँ, तोपखाना और रेशम।
- प्रमुख व्यापारिक केंद्र – सूरत, कालीकट, मछलीपट्टनम, गोवा।
- अरब, फारस, तुर्की, अफ्रीका और यूरोप के साथ सक्रिय समुद्री और थल मार्ग।
मुद्रा प्रणाली
- दिल्ली सल्तनत और मुगल काल में सुव्यवस्थित धातु मुद्रा प्रणाली।
- सोने की मुद्रा – अशरफी और मोहुर।
- चाँदी की मुद्रा – रुपया।
- ताँबे की मुद्रा – दमड़ी, पाई, कौड़ी।
- अकबर के समय सिक्कों का मानकीकरण हुआ।
कर और राजस्व व्यवस्था
- भूमि कर – उपज का एक निश्चित भाग (आमतौर पर एक-तिहाई)।
- व्यापार कर – आयात-निर्यात और आंतरिक व्यापार पर शुल्क।
- जजिया कर – गैर-मुस्लिमों पर धार्मिक कर (सल्तनत और औरंगजेब काल में लागू)।
- नगर कर – सड़क, पुल और बाज़ार कर।
प्रशासन और अर्थव्यवस्था
- दिल्ली सल्तनत में इक्तादारी प्रणाली – सैनिक और अधिकारी को भूमि का राजस्व संग्रह करने का अधिकार।
- मुगल काल में मंसबदारी प्रणाली – अधिकारियों को वेतन और ज़िम्मेदारियाँ।
- आबकारी और उत्पादन शुल्क से अतिरिक्त राजस्व।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
- हिंदू और मुस्लिम कारीगरों के सहयोग से मिश्रित कला और वस्त्र डिज़ाइन।
- मुगल स्थापत्य के निर्माण ने पत्थर और संगमरमर उद्योग को बढ़ावा दिया।
- बाज़ारों में वस्तुओं की विविधता और उपभोक्ता संस्कृति का विकास।
विदेशी व्यापारियों का आगमन
- 15वीं शताब्दी के अंत में पुर्तगाली, फिर डच, अंग्रेज़ और फ्रांसीसी व्यापारी आए।
- भारत के मसाले, कपड़े और रत्न यूरोप में अत्यधिक लोकप्रिय हुए।
- विदेशी व्यापारियों ने भारतीय बंदरगाहों पर कारखाने और गोदाम स्थापित किए।
निष्कर्ष
मध्यकालीन भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि आधारित, हस्तशिल्प समृद्ध और व्यापारिक दृष्टि से विश्व में अग्रणी थी। इस काल में केंद्रीकृत प्रशासन, मजबूत मुद्रा प्रणाली और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार ने भारत को “समृद्ध सभ्यता” के रूप में स्थापित किया। विदेशी व्यापारियों का आगमन इस समृद्धि का प्रमाण था, हालांकि आगे चलकर यही भारत की राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव का कारण बना।
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