नमकीन मृदा (Saline Soil)

नमकीन मृदा (Saline Soil)

निर्माण, विशेषताएँ और कृषि पर प्रभाव

परिचय

नमकीन मृदा (Saline Soil) भारत के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में पाई जाने वाली ऐसी मृदा है जिसमें लवणीयता की मात्रा अधिक होती है। इसे अक्सर एल्केलाइन मृदा या रेह भी कहा जाता है। इस मृदा में घुलनशील लवणों की अधिकता के कारण इसकी उपजाऊ क्षमता प्रभावित होती है और कई बार यह कृषि के लिए चुनौतीपूर्ण बन जाती है।


नमकीन मृदा का निर्माण

प्राकृतिक कारण

  • शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में कम वर्षा और अधिक वाष्पीकरण
  • भूजल में अधिक लवणीयता
  • निचले इलाकों में जल जमाव

मानवजनित कारण

  • अधिक सिंचाई के बाद उचित जल निकासी का अभाव
  • समुद्री क्षेत्रों में खारे पानी का प्रवेश
  • उर्वरकों और रसायनों का अत्यधिक प्रयोग


नमकीन मृदा की विशेषताएँ

भौतिक लक्षण

  • रंग: धूसर, सफेद या राख जैसा
  • सतह पर सफेद परत के रूप में लवण का जमाव
  • बनावट: रेतीली से लेकर चिकनी मिट्टी तक

रासायनिक लक्षण

  • pH मान अक्सर 8.5 से अधिक
  • सोडियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम लवणों की अधिकता
  • कार्बनिक पदार्थ और नाइट्रोजन की कमी


भारत में नमकीन मृदा का वितरण

मुख्य क्षेत्र

  • पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कुछ भाग
  • गुजरात का कच्छ क्षेत्र
  • राजस्थान का पश्चिमी भाग
  • तटीय आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु


कृषि में नमकीन मृदा की चुनौतियाँ

नमी और लवणीयता

अधिक लवणीयता के कारण पौधों की जल और पोषक तत्व अवशोषण क्षमता घट जाती है।

उपज में कमी

गेहूं, धान और दलहनी फसलों में उत्पादन में गिरावट देखी जाती है।

मृदा संरचना का बिगड़ना

सोडियम की अधिकता से मिट्टी की संरचना ढीली पड़ जाती है और जल निकासी क्षमता घट जाती है।


नमकीन मृदा का सुधार और प्रबंधन

रासायनिक उपचार

  • जिप्सम (Gypsum) का प्रयोग सोडियम को कैल्शियम से प्रतिस्थापित करता है।
  • सल्फ्यूरिक एसिड का सीमित उपयोग pH कम करने में सहायक।

जल प्रबंधन

  • अच्छी जल निकासी प्रणाली का निर्माण
  • ताजे पानी से लीचिंग (Leaching) कर लवण को नीचे की परतों में धकेलना

जैविक उपचार

  • गोबर की खाद, हरी खाद और कम्पोस्ट का उपयोग
  • नमक-सहिष्णु फसलें जैसे ज्वार, बाजरा, बरसीम, चारा फसलें


नमकीन मृदा का कृषि महत्व

हालांकि नमकीन मृदा की उत्पादकता सामान्य परिस्थितियों में कम होती है, लेकिन वैज्ञानिक प्रबंधन और उन्नत कृषि तकनीकों से इसे भी कृषि योग्य बनाया जा सकता है। कुछ तटीय क्षेत्रों में नमक-सहिष्णु धान और नारियल जैसी फसलें सफलतापूर्वक उगाई जाती हैं।


निष्कर्ष

नमकीन मृदा भारत में कृषि विकास की एक महत्वपूर्ण चुनौती है, लेकिन सिंचाई प्रबंधन, रासायनिक और जैविक सुधार के माध्यम से इसकी उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। सही तकनीकों के उपयोग से यह मृदा भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में योगदान दे सकती है।



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