पंचायती राज व्यवस्था(Panchayati Raj System)
परिचय(Introduction)
भारत का लोकतंत्र केवल संसद और विधानसभाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह गाँव-गाँव तक फैला हुआ है। ग्राम स्तर पर लोकतांत्रिक शासन को साकार करने के लिए संविधान में पंचायती राज व्यवस्था का प्रावधान किया गया। इसे हम भारतीय लोकतंत्र की नींव कह सकते हैं।
📜 संवैधानिक आधार
- 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 – पंचायतों को संवैधानिक दर्जा।
- भाग IX (अनुच्छेद 243 से 243-O तक) – पंचायती राज से संबंधित प्रावधान।
- ग्यारहवीं अनुसूची – पंचायतों को 29 विषय सौंपे गए।
🏛️ संरचना – त्रिस्तरीय प्रणाली
ग्राम स्तर – ग्राम पंचायत
गाँव की मूल इकाई।मुखिया/सरपंच + वार्ड सदस्य।
मध्य स्तर - पंचायत समिति (जनपद पंचायत)
प्रखंड या ब्लॉक स्तर पर।
अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और निर्वाचित सदस्य।
अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और निर्वाचित सदस्य।
जिला स्तर – जिला परिषद
जिले की सर्वोच्च पंचायत।
जिला परिषद अध्यक्ष इसके प्रमुख।
जिला परिषद अध्यक्ष इसके प्रमुख।
⚖️ पंचायती राज की विशेषताएँ
- प्रत्यक्ष चुनाव – ग्राम पंचायत, पंचायत समिति व जिला परिषद के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं।
- आरक्षण – महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए सीटें आरक्षित।
- कार्यकाल – 5 वर्ष।
- वित्तीय शक्तियाँ – कर लगाना, अनुदान प्राप्त करना, संसाधनों का उपयोग करना।
- राज्य वित्त आयोग – पंचायतों को वित्तीय संसाधन सुनिश्चित करने हेतु हर पाँच वर्ष में गठन।
- राज्य निर्वाचन आयोग – पंचायत चुनावों का संचालन।
📊 ग्यारहवीं अनुसूची (पंचायतों के लिए 29 विषय)
- कृषि, भूमि सुधार, लघु सिंचाई, पशुपालन।
- ग्रामीण विकास, गरीबी उन्मूलन।
- स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला व बाल विकास।
- सड़क, बिजली, पेयजल।
- सामाजिक न्याय, विकलांग कल्याण।
✅ महत्व
- लोकतंत्र का विकेंद्रीकरण।
- स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप योजनाएँ।
- जनता की सीधी भागीदारी।
- सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण।
- ग्रामीण विकास की गति तेज।
⚠️ चुनौतियाँ
- वित्तीय संसाधनों की कमी।
- क्षमता और प्रशिक्षण का अभाव।
- भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप।
- शहरीकरण के कारण ग्रामीण पंचायतों की उपेक्षा।
🌍 उदाहरण
- केरल – जन योजना अभियान के अंतर्गत पंचायतों की बड़ी भूमिका।
- राजस्थान – 1959 में नागौर से भारत में पहला पंचायत राज प्रयोग शुरू।
🔑 निष्कर्ष
पंचायती राज व्यवस्था भारत में “गाँव की सरकार” का रूप है। यह न केवल ग्रामीण विकास की नींव है, बल्कि लोकतंत्र को गहराई तक पहुँचाने का साधन भी है। चुनौतियों के बावजूद, पंचायती राज ने भारत में जन भागीदारी, पारदर्शिता और विकास को मजबूत किया है।
 
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