प्राथमिक क्षेत्र(Primary Sector)

 प्राथमिक क्षेत्र: भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव

भारतीय अर्थव्यवस्था को समझने के लिए हमें सबसे पहले इसके प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector) का विश्लेषण करना आवश्यक है। यह क्षेत्र वह आधार है, जिस पर माध्यमिक (Secondary) और तृतीयक (Tertiary) क्षेत्र खड़े होते हैं। प्राथमिक क्षेत्र में वे सभी आर्थिक गतिविधियाँ शामिल होती हैं, जिनका सीधा संबंध प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग और दोहन से होता है।

इस लेख में हम विस्तार से देखेंगे कि प्राथमिक क्षेत्र में क्या-क्या आता है, इसकी विशेषताएँ क्या हैं, यह भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करता है, और आज की चुनौतियाँ व भविष्य की संभावनाएँ क्या हैं।


प्राथमिक क्षेत्र की परिभाषा

प्राथमिक क्षेत्र उन सभी आर्थिक गतिविधियों को कहा जाता है, जिनमें हम सीधे प्रकृति से संसाधन प्राप्त करते हैं। इसमें मुख्यतः –

  • कृषि (Agriculture)
  • वानिकी (Forestry)
  • मत्स्य पालन (Fishing)
  • खनन (Mining)
  • पशुपालन (Animal Husbandry)

शामिल होते हैं।


प्राथमिक क्षेत्र की विशेषताएँ

  1. प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता – इस क्षेत्र की गतिविधियाँ प्रकृति और पर्यावरण पर सीधी निर्भर होती हैं।
  2. श्रम प्रधान क्षेत्र – इसमें तकनीक की तुलना में मानव श्रम की अधिक आवश्यकता होती है।
  3. असुरक्षा – वर्षा, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं का सीधा प्रभाव पड़ता है।
  4. ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार – भारत की लगभग 45–50% जनसंख्या आज भी कृषि पर निर्भर है।
  5. राष्ट्रीय आय में योगदान – स्वतंत्रता के समय राष्ट्रीय आय में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान लगभग 55% था, जो आज घटकर करीब 18–20% रह गया है।


प्राथमिक क्षेत्र के घटक

1. कृषि

  • भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है।
  • मुख्य फसलें: धान, गेहूँ, मक्का, दालें, गन्ना, कपास।
  • नकदी फसलें: चाय, कॉफी, रबर, जूट, तंबाकू।

2. पशुपालन

  • दुग्ध उत्पादन में भारत विश्व में अग्रणी है।
  • गाय, भैंस, बकरी और भेड़ पालन से दूध, ऊन, मांस और चमड़ा प्राप्त होता है।

3. मत्स्य पालन

  • भारत विश्व में मछली उत्पादन में प्रमुख देशों में शामिल है।
  • समुद्री और अंतर्देशीय (नदी, झील) मत्स्य पालन ग्रामीण रोजगार का बड़ा स्रोत है।

4. वानिकी

  • वनों से लकड़ी, रबर, गोंद, औषधियाँ और अन्य वन-उत्पाद प्राप्त होते हैं।
  • यह क्षेत्र पर्यावरण संतुलन में भी महत्त्वपूर्ण है।

5. खनन

  • भारत में कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट, मैंगनीज, सोना और अभ्रक जैसे खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
  • खनन उद्योग भारी उद्योगों और ऊर्जा क्षेत्र का आधार है।


भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्राथमिक क्षेत्र का प्रभाव

  1. रोजगार सृजन – देश की बड़ी आबादी को रोजगार प्रदान करता है।
  2. खाद्य सुरक्षा – कृषि से देशवासियों को भोजन उपलब्ध होता है।
  3. कच्चा माल – उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चा माल (कपास, गन्ना, खनिज) यहीं से मिलता है।
  4. निर्यात में योगदान – चाय, कॉफी, कपास, चमड़ा, मसाले जैसे उत्पाद निर्यात में अहम भूमिका निभाते हैं।
  5. ग्रामीण विकास – प्राथमिक क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाता है।


प्राथमिक क्षेत्र की चुनौतियाँ

  1. जलवायु परिवर्तन और असमान वर्षा
  2. छोटे और बंटे हुए खेत, जिससे उत्पादन क्षमता कम होती है।
  3. आधुनिक तकनीक की कमी – अभी भी परंपरागत तरीकों का उपयोग अधिक है।
  4. भंडारण और परिवहन की कमी – कृषि उपज का बड़ा हिस्सा खराब हो जाता है।
  5. खनन और वनों का अंधाधुंध दोहन – इससे पर्यावरणीय संकट गहराता है।


सुधार और सरकारी पहल

  1. हरित क्रांति – उच्च उपज वाली किस्में, उर्वरक और सिंचाई का विस्तार।
  2. श्वेत क्रांति – दुग्ध उत्पादन बढ़ाने हेतु अमूल मॉडल।
  3. नीली क्रांति – मछली पालन के विकास हेतु पहल।
  4. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) – किसानों को सीधी आर्थिक सहायता।
  5. डिजिटल और स्मार्ट कृषि – ड्रोन, सेंसर और एग्री-टेक स्टार्टअप्स का प्रयोग।


निष्कर्ष

भारत का प्राथमिक क्षेत्र न केवल अर्थव्यवस्था की नींव है बल्कि यह करोड़ों लोगों की जीविका और आजीविका से भी जुड़ा है। समय के साथ इसका राष्ट्रीय आय में योगदान कम हुआ है, लेकिन इसका सामाजिक और आर्थिक महत्व आज भी उतना ही गहरा है। भविष्य में आवश्यकता है कि इस क्षेत्र को आधुनिक तकनीक, बेहतर बुनियादी ढाँचे और सतत विकास की दिशा में और मज़बूत किया जाए, ताकि यह भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थायी आधार प्रदान करता रहे।



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