राष्ट्रपति शासन

 राष्ट्रपति शासन (President’s Rule in India)

भारतीय संविधान में राष्ट्रपति शासन (President’s Rule) एक विशेष प्रावधान है, जिसके तहत किसी राज्य की सरकार को भंग कर वहाँ की कार्यपालिका और विधायिका की शक्तियाँ अस्थायी रूप से केंद्र सरकार के अधीन कर दी जाती हैं। इसे प्रायः संविधान का अनुच्छेद 356 कहा जाता है।


📜 संवैधानिक आधार

  1. अनुच्छेद 356 – यदि किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाए तो राष्ट्रपति उस राज्य में शासन संभाल सकते हैं।
  2. अनुच्छेद 355 – केंद्र का दायित्व है कि वह प्रत्येक राज्य में संविधान के अनुसार शासन सुनिश्चित करे और बाहरी आक्रमण/आंतरिक अशांति से उसकी रक्षा करे।
  3. अनुच्छेद 357 – राष्ट्रपति शासन लागू होने पर संसद राज्य की विधायी शक्तियों का प्रयोग कर सकती है।


🏛️ राष्ट्रपति शासन लागू होने की परिस्थितियाँ

  1. संविधानिक तंत्र की विफलता – जैसे बहुमत न साबित कर पाना।
  2. विधानसभा का न चल पाना – बार-बार अविश्वास प्रस्ताव।
  3. कानून-व्यवस्था का गंभीर संकट
  4. राजनीतिक अस्थिरता – दल-बदल, गठबंधन टूटना।
  5. राज्य सरकार द्वारा संविधान का उल्लंघन।


⚖️ राष्ट्रपति शासन की प्रक्रिया

  1. राज्यपाल राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजते हैं।
  2. राष्ट्रपति आदेश जारी कर राज्य की सरकार को बर्खास्त कर सकते हैं।
  3. आदेश संसद की दोनों सदनों में 2 महीने के भीतर अनुमोदित होना चाहिए।
  4. राष्ट्रपति शासन की अवधि –
  5. प्रारंभिक अवधि: 6 महीने
  6. संसद की अनुमति से अधिकतम: 3 वर्ष

लेकिन 3 वर्ष से अधिक विस्तार संभव नहीं है।

📊 राष्ट्रपति शासन की स्थिति (2025 तक)

  • भारत में अब तक 100 से अधिक बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है।
  • सबसे अधिक बार राष्ट्रपति शासन झेलने वाला राज्य है उत्तर प्रदेश
  • हाल के वर्षों में – जम्मू-कश्मीर (2018-2019), महाराष्ट्र (2019), पुडुचेरी (2021) में राष्ट्रपति शासन लगाया गया।


✅ राष्ट्रपति शासन के लाभ

  1. गंभीर संकट में राज्य प्रशासन को स्थिरता मिलती है।
  2. संविधान और राष्ट्रीय एकता की रक्षा।
  3. राजनीतिक गतिरोध खत्म करने में सहायक।
  4. आपातकालीन परिस्थितियों (जैसे दंगे, आतंकवाद) से निपटने में मदद।


⚠️ राष्ट्रपति शासन की आलोचनाएँ

  1. केंद्र द्वारा राज्यों की स्वायत्तता का हनन
  2. राजनीतिक दलों द्वारा दुरुपयोग (विपक्षी राज्यों की सरकार गिराना)।
  3. लोकतंत्र और संघीय ढाँचे पर प्रश्नचिन्ह।
  4. अक्सर यह “संविधानिक हथियार” की जगह “राजनीतिक हथियार” बन जाता है।


🏛️ सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रपति शासन

  • एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा –
  1. राष्ट्रपति शासन की न्यायिक समीक्षा संभव है।
  2. बहुमत साबित करने का परीक्षण विधानसभा में ही होना चाहिए, न कि राज्यपाल की रिपोर्ट पर।
  3. अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता।

🌍 निष्कर्ष

राष्ट्रपति शासन भारतीय संविधान की एक संवेदनशील व्यवस्था है। यह राज्यों में असाधारण परिस्थितियों में लोकतांत्रिक शासन बनाए रखने का साधन है। लेकिन इसका प्रयोग केवल वास्तविक संवैधानिक संकट में होना चाहिए, न कि राजनीतिक लाभ के लिए।



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