सरदार वल्लभभाई पटेल(Sardar Vallabhai Patel)
भारत का लौह पुरुष
प्रस्तावना
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में यदि किसी नेता ने अपने दृढ़ संकल्प, दूरदर्शिता और संगठन कौशल से भारत की एकता को मजबूत किया, तो वह हैं सरदार वल्लभभाई पटेल। उन्हें पूरे देश में “भारत का लौह पुरुष” कहा जाता है। उन्होंने स्वतंत्र भारत को राजनीतिक रूप से एकजुट करने का महान कार्य किया। उनका जीवन केवल स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखने में भी अद्वितीय योगदान दिया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
- जन्म : 31 अक्टूबर 1875, नाडियाद (गुजरात)।
- पिता का नाम झवेरभाई पटेल और माता का नाम लाडबाई था।
- बचपन से ही उनमें मेहनत, सत्यनिष्ठा और साहस की झलक दिखाई देती थी।
- उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव से प्राप्त की और आगे चलकर लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की।
- भारत लौटकर उन्होंने वकालत शुरू की और शीघ्र ही गुजरात के प्रसिद्ध वकीलों में गिने जाने लगे।
स्वतंत्रता संग्राम में प्रवेश
- 1917 में उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में खेड़ा सत्याग्रह का नेतृत्व किया।
- 1928 में उन्होंने बारडोली सत्याग्रह का सफल संचालन किया। किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए उनके संघर्ष ने उन्हें “सरदार” की उपाधि दिलाई।
- उन्होंने ब्रिटिश सरकार के दमनकारी कानूनों के खिलाफ नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लिया।
- वे गांधीजी के सबसे विश्वसनीय सहयोगियों में गिने जाते थे।
कांग्रेस और संगठनात्मक भूमिका
- वल्लभभाई पटेल कांग्रेस के एक संगठक और प्रशासक के रूप में प्रसिद्ध थे।
- उन्होंने कांग्रेस संगठन को गाँव-गाँव तक पहुँचाया और जन-आंदोलनों को प्रभावी बनाया।
- उनकी प्रशासनिक क्षमता इतनी अद्वितीय थी कि स्वतंत्रता के बाद उन्हें भारत का उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बनाया गया।
रियासतों का एकीकरण
भारत की आज़ादी के समय सबसे बड़ी चुनौती थी 562 रियासतों का भारत में विलय।
- पटेल ने वी.पी. मेनन की सहायता से “इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन” तैयार कराया।
- उन्होंने रियासतों के शासकों को समझाकर, दबाव डालकर और कभी-कभी सेना की मदद से भारत में शामिल किया।
- हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर जैसी बड़ी रियासतों का भारत में विलय पटेल की रणनीति और दृढ़ता से ही संभव हो पाया।
- इस कार्य के कारण ही उन्हें “भारत का लौह पुरुष” कहा गया।
सरदार पटेल के विचार और दर्शन
- एकता सर्वोपरि – उनका मानना था कि भारत तभी प्रगति कर सकता है, जब वह राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से एकजुट हो।
- सख़्त लेकिन न्यायप्रिय नेतृत्व – वे अनुशासन, व्यवस्था और कठोर निर्णय के पक्षधर थे।
- लोकतांत्रिक आदर्श – वे जनता के अधिकारों और समान अवसरों में विश्वास रखते थे।
- ग्राम विकास – वे मानते थे कि भारत की शक्ति उसके गाँवों में निहित है।
प्रमुख उपाधियाँ और सम्मान
- “लौह पुरुष” – दृढ़ इच्छाशक्ति और अडिग नेतृत्व के लिए।
- “भारत का बिस्मार्क” – जर्मनी के बिस्मार्क की तरह भारत को एकजुट करने के कारण।
- 1991 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
- उनकी स्मृति में गुजरात के नर्मदा जिले में विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” स्थापित की गई।
निधन
15 दिसंबर 1950 को सरदार पटेल का निधन हो गया। यद्यपि वे शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका कार्य और विचार आज भी हर भारतीय को प्रेरित करते हैं।
सरदार पटेल की विरासत
- उन्होंने भारत को एकजुट राष्ट्र बनाने में सबसे बड़ा योगदान दिया।
- उनकी राजनीतिक सूझबूझ और प्रशासनिक क्षमता आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श है।
- वे आज भी भारत की एकता, शक्ति और दृढ़ता के प्रतीक बने हुए हैं।
निष्कर्ष
आज का अखंड और सशक्त भारत, सरदार पटेल की अदम्य इच्छाशक्ति और योगदान का परिणाम है। वे सदैव राष्ट्र की एकता के प्रहरी और भारत के लौह पुरुष के रूप में स्मरण किए जाएँगे।

 
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