स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Movement)
इतिहास, उद्देश्य और प्रभाव
स्वदेशी आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण आंदोलन था, जो बंगाल विभाजन (1905) के विरोध में शुरू हुआ। इस आंदोलन का उद्देश्य था विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और देशी उद्योगों का विकास, जिससे ब्रिटिश शासन की आर्थिक और राजनीतिक पकड़ कमजोर हो।
स्वदेशी आंदोलन की पृष्ठभूमि
- साल: 1905 – 1911
- कारण: ब्रिटिश शासन द्वारा बंगाल का विभाजन।
- प्रमुख स्थान: बंगाल (पूर्वी और पश्चिमी)
- नेता: बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय
बंगाल विभाजन के कारण जनता में आक्रोश और असंतोष बढ़ गया। ब्रिटिश शासन की नीतियों का विरोध करने के लिए स्वदेशी आंदोलन ने जन्म लिया।
स्वदेशी आंदोलन के उद्देश्य
विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार (Boycott of Foreign Goods)
- अंग्रेजी कपड़े, जूते और अन्य उत्पादों का बहिष्कार।
- देशी वस्त्र, हस्तशिल्प और उद्योगों को प्रोत्साहित करना।
देशी उद्योग और व्यापार को बढ़ावा (Promotion of Indigenous Industries)
- खादी और स्थानीय कारीगरों के उत्पादों का प्रयोग।
- स्थानीय उद्योगों और रोजगार को समर्थन।
राष्ट्रीय जागरूकता और एकता (National Awareness and Unity)
- जनता में स्वराज और स्वतंत्रता की भावना का विकास।
- हिंदू और मुस्लिम समुदायों को राजनीतिक संघर्ष में एकजुट करना।
स्वदेशी आंदोलन के प्रमुख कार्यक्रम और गतिविधियाँ
विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार
- अंग्रेजी कपड़े, चाय, शराब और अन्य उत्पादों का प्रयोग बंद किया गया।
देशी वस्त्र और खादी का प्रचार
- महात्मा गांधी ने खादी को आंदोलन का प्रतीक बनाया।
- घर-घर में खादी धारण करने का अभियान।
सांस्कृतिक और साहित्यिक जागरूकता
- अखबार, पत्रिकाओं और साहित्यिक कार्यक्रमों के माध्यम से आंदोलन को बढ़ावा।
राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना
- स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कारीगरों और व्यापारियों के संगठन।
स्वदेशी आंदोलन के प्रभाव
राजनीतिक प्रभाव
- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा मिली।
- कांग्रेस की सक्रियता और जनता की भागीदारी बढ़ी।
आर्थिक प्रभाव
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और देशी उद्योगों को मजबूती।
- खादी और हस्तशिल्प का विकास।
सामाजिक प्रभाव
- राष्ट्रीय एकता और जागरूकता का प्रसार।
- जनता में स्वतंत्रता की भावना का विकास।
महिला और युवा भागीदारी
- महिलाओं और युवाओं ने भी स्वदेशी आंदोलन में सक्रिय भाग लिया।
स्वदेशी आंदोलन का अंत
- साल: 1911
- कारण: बंगाल का पुनर्मिलन और आंदोलन की दिशा बदलना।
प्रभाव:
- राष्ट्रीय आंदोलन को नई ऊर्जा मिली।
- जनता ने अहिंसा और संगठित संघर्ष की शक्ति को समझा।
निष्कर्ष
स्वदेशी आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला बड़ा आर्थिक और राजनीतिक आंदोलन था। इसने जनता को संगठित किया, विदेशी शासन का विरोध सिखाया और देशी उद्योगों को बढ़ावा दिया। यह आंदोलन साबित करता है कि आर्थिक स्वतंत्रता और राजनीतिक स्वतंत्रता आपस में जुड़े हैं।
 
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