बेरोजगारी और आर्थिक विकास के संबंध
प्रस्तावना
बेरोजगारी (Unemployment) और आर्थिक विकास (Economic Development) एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। किसी भी देश की प्रगति का मूल्यांकन केवल उसके उत्पादन और आय से नहीं किया जा सकता, बल्कि इस बात से भी किया जाता है कि वहाँ के नागरिकों को रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं या नहीं। जब बेरोजगारी बढ़ती है, तो आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ जाती है, और जब आर्थिक विकास तेज़ होता है, तो रोजगार के अवसर स्वतः ही बढ़ते हैं।
बेरोजगारी और आर्थिक विकास की परिभाषा
- बेरोजगारी: जब कोई व्यक्ति कार्य करने की क्षमता और इच्छा रखते हुए भी उपयुक्त कार्य प्राप्त नहीं कर पाता।
- आर्थिक विकास: किसी देश में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में निरंतर वृद्धि के साथ-साथ लोगों के जीवन स्तर का सुधार।
बेरोजगारी और आर्थिक विकास का संबंध
1. उत्पादन और आय पर प्रभाव
- बेरोजगारी बढ़ने से मानव संसाधन का उपयोग कम हो जाता है।
- उत्पादन और राष्ट्रीय आय घटती है।
- आर्थिक विकास की दर धीमी पड़ती है।
2. गरीबी और असमानता
- बेरोजगारी से लोगों की आय में कमी होती है।
- गरीब और अमीर के बीच आर्थिक असमानता बढ़ती है।
- इससे समावेशी विकास (Inclusive Growth) बाधित होता है।
3. निवेश और मांग पर असर
- बेरोजगारी से लोगों की क्रय शक्ति (Purchasing Power) घटती है।
- वस्तुओं और सेवाओं की मांग कम हो जाती है।
- उद्योगों और व्यवसायों पर नकारात्मक असर पड़ता है, जिससे निवेश भी घटता है।
4. सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ
- बेरोजगारी से गरीबी, अपराध, अशांति और पलायन जैसी समस्याएँ बढ़ती हैं।
- यह सामाजिक स्थिरता और आर्थिक विकास दोनों के लिए हानिकारक है।
5. विकास का सकारात्मक चक्र
- यदि रोजगार बढ़ता है तो लोगों की आय बढ़ती है,
- जिससे मांग और उत्पादन बढ़ते हैं,
- परिणामस्वरूप आर्थिक विकास तेज़ होता है।
बेरोजगारी और आर्थिक विकास से जुड़ा सिद्धांत
ओकुन का नियम (Okun’s Law)
- यह बताता है कि बेरोजगारी और आर्थिक विकास के बीच नकारात्मक संबंध है।
- यदि बेरोजगारी 1% घटती है तो GDP लगभग 2-3% बढ़ सकती है।
- इसका अर्थ है कि रोजगार सृजन से आर्थिक विकास की गति तेज़ होती है।
भारत में बेरोजगारी और आर्थिक विकास
- भारत में तेज़ आर्थिक विकास के बावजूद बेरोजगारी दर ऊँची है।
- इसे जॉबलेस ग्रोथ (Jobless Growth) कहा जाता है, क्योंकि विकास हो रहा है लेकिन पर्याप्त रोजगार नहीं बन रहे।
- कारण:
ग्रामीण क्षेत्रों में छिपी बेरोजगारी।
शिक्षा और कौशल के बीच अंतर।
सेवा क्षेत्र में अधिक वृद्धि लेकिन विनिर्माण क्षेत्र में धीमी प्रगति।
समाधान और नीति सुझाव
- श्रम-प्रधान उद्योगों (Labour Intensive Industries) को बढ़ावा देना।
- MSME और स्टार्टअप्स के माध्यम से स्थानीय रोजगार सृजित करना।
- कौशल विकास कार्यक्रम जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना को व्यापक बनाना।
- कृषि और ग्रामीण उद्योगों का आधुनिकीकरण।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था और ग्रीन जॉब्स में निवेश।
- शिक्षा प्रणाली को रोजगारोन्मुख बनाना।
निष्कर्ष
बेरोजगारी और आर्थिक विकास का संबंध सीधा और परस्पर-निर्भर है। अधिक बेरोजगारी आर्थिक विकास की गति को धीमा कर देती है, जबकि अधिक रोजगार सृजन से आर्थिक विकास में तेजी आती है। भारत के लिए चुनौती यह है कि वह अपनी युवा आबादी को उत्पादक रोजगार में परिवर्तित करे। यदि सरकार, उद्योग और समाज मिलकर रोजगारपरक विकास नीतियाँ अपनाएँ, तो भारत न केवल बेरोजगारी की समस्या से उबर सकता है बल्कि विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में अपनी स्थिति और मजबूत कर सकता है।
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