कचरा प्रबंधन (Waste Management)

 कचरा प्रबंधन (Waste Management)

परिचय(Introduction)

आज के आधुनिक समाज में कचरा प्रबंधन (Waste Management) एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय बन गया है। जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और बदलती जीवनशैली के कारण कचरे की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। यदि इसका सही प्रबंधन न किया जाए तो यह न केवल पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न करता है बल्कि मानव स्वास्थ्य और आर्थिक विकास पर भी गंभीर असर डालता है।

इस लेख में हम कचरा प्रबंधन की परिभाषा, प्रकार, महत्व, चुनौतियाँ और समाधान पर विस्तार से चर्चा करेंगे।


1. कचरा प्रबंधन क्या है?

कचरा प्रबंधन वह प्रक्रिया है जिसमें कचरे का संग्रह, पृथक्करण, परिवहन, पुनर्चक्रण, निपटान और पुनः उपयोग शामिल होता है। इसका मुख्य उद्देश्य है –

  • पर्यावरण प्रदूषण कम करना,
  • संसाधनों का संरक्षण करना,
  • और एक स्वच्छ व स्वस्थ समाज सुनिश्चित करना।


2. कचरे के प्रकार

2.1 ठोस कचरा (Solid Waste)

  • घरेलू कचरा, प्लास्टिक, धातु, कागज, काँच।

2.2 तरल कचरा (Liquid Waste)

  • सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट, गंदा पानी।

2.3 बायोमेडिकल कचरा

  • अस्पतालों से निकलने वाले इस्तेमाल किए गए सिरिंज, दवाइयाँ, मास्क आदि।

2.4 इलेक्ट्रॉनिक कचरा (E-Waste)

  • पुराने मोबाइल, कंप्यूटर, टीवी, बैटरी।

2.5 खतरनाक/विषाक्त कचरा

  • रासायनिक पदार्थ, कीटनाशक, औद्योगिक गैसें।

2.6 कृषि अपशिष्ट

  • फसल अवशेष, पशु अपशिष्ट।

3. कचरा प्रबंधन के चरण

  1. कचरे का संग्रह (Collection) – घरों, उद्योगों और बाजारों से कचरे का एकत्रीकरण।
  2. पृथक्करण (Segregation) – गीला और सूखा कचरा अलग करना।
  3. परिवहन (Transportation) – कचरे को प्रसंस्करण केंद्र तक ले जाना।
  4. प्रसंस्करण (Processing) – रीसाइक्लिंग, कम्पोस्टिंग, बायोगैस उत्पादन।
  5. निपटान (Disposal) – सुरक्षित तरीके से लैंडफिल या दहन द्वारा निपटान।


4. कचरा प्रबंधन का महत्व

  • पर्यावरण संरक्षण – प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी।
  • स्वास्थ्य सुरक्षा – बीमारियों और संक्रमण के खतरे को घटाना।
  • संसाधनों का संरक्षण – पुनर्चक्रण से प्राकृतिक संसाधनों का बचाव।
  • आर्थिक लाभ – अपशिष्ट से ऊर्जा और खाद का उत्पादन।
  • सतत विकास – भविष्य की पीढ़ियों के लिए संतुलित पर्यावरण।


5. भारत में कचरा प्रबंधन की स्थिति

  • शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन लगभग 1.5 लाख टन ठोस कचरा उत्पन्न होता है।
  • इसमें से केवल लगभग 30% ही वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधित हो पाता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि अवशेष और बायोमास अपशिष्ट की समस्या बड़ी है।
  • ई-कचरा तेजी से बढ़ रहा है, भारत विश्व में इसका तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।


6. कचरा प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियाँ

  • जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण
  • अपर्याप्त अवसंरचना – कचरा संग्रह और रीसाइक्लिंग सुविधाओं की कमी।
  • जागरूकता की कमी – लोग गीले और सूखे कचरे को अलग नहीं करते।
  • वित्तीय संसाधनों की कमी – स्थानीय निकायों के पास पर्याप्त बजट नहीं।
  • अनौपचारिक क्षेत्र पर निर्भरता – कबाड़ी और रैग पिकर्स पर अधिक भार।


7. कचरा प्रबंधन के उपाय

7.1 3R सिद्धांत – Reduce, Reuse, Recycle

  • कम करना (Reduce) – सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का उपयोग घटाना।
  • पुनः उपयोग (Reuse) – कपड़े के बैग, बोतलें, बर्तन।
  • पुनर्चक्रण (Recycle) – धातु, कागज, प्लास्टिक का रीसाइक्लिंग।

7.2 आधुनिक तकनीक

  • वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट्स – कचरे से बिजली उत्पादन।
  • कम्पोस्टिंग – गीले कचरे से खाद बनाना।
  • बायोगैस संयंत्र – रसोई और कृषि अपशिष्ट से गैस बनाना।

7.3 सरकारी पहल

  • स्वच्छ भारत मिशन (2014) – कचरा मुक्त भारत का लक्ष्य।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम (2016, संशोधित 2022) – सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध।
  • ई-वेस्ट प्रबंधन नियम (2016) – इलेक्ट्रॉनिक कचरे का सुरक्षित निपटान।
  • नगर पालिका ठोस कचरा प्रबंधन नियम (2016)।

7.4 सामुदायिक भागीदारी

  • घर-घर में कचरे का पृथक्करण।
  • स्कूलों, कॉलेजों और समाज में जागरूकता अभियान।
  • स्थानीय संगठनों और स्वयंसेवी संस्थाओं की भागीदारी।


8. भविष्य की दिशा

  • स्मार्ट सिटी और स्मार्ट वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम
  • डिजिटल तकनीक और IoT आधारित निगरानी
  • ग्रीन जॉब्स – कचरा प्रबंधन से रोजगार सृजन।
  • सतत उपभोग की आदतें – कम से कम कचरा उत्पन्न करना।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग – कचरा प्रबंधन के लिए उन्नत तकनीक का आदान-प्रदान।


निष्कर्ष

कचरा प्रबंधन केवल सफाई या निपटान का विषय नहीं है, बल्कि यह पर्यावरणीय संतुलन, स्वास्थ्य सुरक्षा और सतत विकास से जुड़ा हुआ मुद्दा है। यदि हम समय रहते रीसाइक्लिंग, कम्पोस्टिंग, जागरूकता और सरकारी नीतियों को सही ढंग से लागू करें तो हम इस समस्या को अवसर में बदल सकते हैं।



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