महिला आरक्षण (Women’s Reservation in India)
परिचय(Introduction)
भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है, लेकिन लंबे समय तक राजनीति और निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम रही। इसी असमानता को दूर करने के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर महिला आरक्षण (Women’s Reservation) की व्यवस्था की गई।
📜 पृष्ठभूमि
- स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही, लेकिन 1950 के बाद राजनीति में उनकी भागीदारी सीमित रही।
- 73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन (1992-93) – पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों में 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गईं।
- राष्ट्रीय स्तर पर संसद और विधानसभाओं में महिला आरक्षण लंबे समय से चर्चा का विषय रहा।
⚖️ संवैधानिक आधार
- अनुच्छेद 15(3) – राज्य महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है।
- अनुच्छेद 243D और 243T – पंचायत और नगर निकायों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण।
🏛️ प्रमुख विकासक्रम
1. पंचायती राज और शहरी निकायों में आरक्षण
- 73वाँ संशोधन (1992) – ग्राम पंचायत, जिला परिषद में 33% सीटें महिलाओं के लिए।
- 74वाँ संशोधन (1992) – नगर पालिका, नगर निगम में 33% सीटें।
- कई राज्यों (बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि) ने इसे बढ़ाकर 50% तक कर दिया।
2. संसद और विधानसभाओं में आरक्षण
- महिला आरक्षण विधेयक (108वाँ संशोधन बिल, 2008) – संसद और राज्य विधानसभाओं में 33% आरक्षण का प्रस्ताव।
- यह 2010 में राज्यसभा से पारित हुआ लेकिन लोकसभा में अटक गया।
- लंबे संघर्ष के बाद नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023 पारित हुआ।
3. नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023
- संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण।
- 2029 के आम चुनाव के बाद लागू होगा (सीमांकन और जनगणना पूरी होने के बाद)।
- यह आरक्षण 15 वर्षों तक लागू रहेगा (बाद में संसद इसे बढ़ा सकती है)।
📊 भारत में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी (2025 तक)
- लोकसभा (2024) – 78 महिला सांसद (~14%)।
- राज्य विधानसभाएँ – औसतन 9-12% सीटों पर महिलाएँ।
- पंचायती राज संस्थाएँ – कई जगह महिलाओं की भागीदारी 40-50% तक पहुँच गई है।
✅ महिला आरक्षण के लाभ
- निर्णय-निर्माण में लैंगिक संतुलन।
- महिलाओं के मुद्दों को राजनीतिक एजेंडा मिलना।
- ग्रामीण और वंचित वर्ग की महिलाओं का सशक्तिकरण।
- राजनीतिक दलों में महिला नेतृत्व का विकास।
- लोकतंत्र में विविधता और प्रतिनिधित्व।
⚠️ चुनौतियाँ
- कई बार प्रॉक्सी प्रतिनिधित्व (पति या परिवार के पुरुष सदस्य निर्णय लेते हैं)।
- आरक्षण का लाभ अक्सर शहरी और शिक्षित महिलाओं को अधिक मिलता है।
- संसद और विधानसभाओं में आरक्षण लागू होने में अभी समय लगेगा (2029 से पहले नहीं)।
- राजनीतिक दलों में महिलाओं को टिकट देने में अनिच्छा।
🌍 निष्कर्ष
महिला आरक्षण भारतीय लोकतंत्र में ऐतिहासिक कदम है। पंचायत से लेकर संसद तक महिलाओं को प्रतिनिधित्व देकर न केवल लैंगिक समानता बढ़ेगी, बल्कि लोकतंत्र और अधिक सशक्त होगा। आने वाले समय में महिलाओं की भागीदारी नीतिनिर्माण और प्रशासन में निर्णायक भूमिका निभाएगी।
 
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