साइमन कमीशन

"साइमन कमीशन" simon commission

साइमन कमीशन



    1. परिचय

    साइमन कमीशन का गठन 1927 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत के संवैधानिक सुधारों की समीक्षा के लिए किया गया था। इस कमीशन में कुल सात सदस्य थे, लेकिन इनमें से कोई भी भारतीय नहीं था। इसी कारण इसे भारत में भारी विरोध का सामना करना पड़ा। भारतीय नेताओं ने इसे "अस्वीकार्य" करार देते हुए जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किए। "साइमन गो बैक" का नारा पूरे देश में गूंजा और यह आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ।

    मुख्य बिंदु:

    • 1927 में गठन
    • सात ब्रिटिश सदस्य, कोई भारतीय नहीं
    • "साइमन गो बैक" नारा
    • स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका


    2. पृष्ठभूमि

    मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के तहत 1919 में भारत सरकार अधिनियम लागू हुआ था, जिसमें प्रांतीय स्वशासन की सीमित व्यवस्था दी गई थी। इसे दस साल बाद पुनः समीक्षा करने का वादा किया गया था। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने समय से पहले ही 1927 में समीक्षा के लिए साइमन कमीशन भेजा। भारतीय नेताओं को विश्वास में न लेना इस निर्णय की सबसे बड़ी गलती थी।

    मुख्य बिंदु:

    • 1919 का भारत सरकार अधिनियम
    • दस साल बाद समीक्षा का प्रावधान
    • समय से पहले समीक्षा का निर्णय
    • भारतीय नेताओं की अनदेखी


    3. कमीशन की संरचना

    साइमन कमीशन में कुल सात सदस्य थे, सभी ब्रिटिश सांसद — जिनमें सर जॉन साइमन इसके अध्यक्ष थे। किसी भी भारतीय सदस्य की अनुपस्थिति ने भारतीयों को यह संदेश दिया कि ब्रिटिश सरकार उनके राजनीतिक अधिकारों को गंभीरता से नहीं ले रही है।

    मुख्य बिंदु:

    • अध्यक्ष: सर जॉन साइमन
    • कुल सात सदस्य
    • सभी ब्रिटिश सांसद
    • भारतीय प्रतिनिधित्व का अभाव


    4. भारतीय प्रतिक्रिया

    साइमन कमीशन के आगमन पर भारत में व्यापक विरोध हुआ। कांग्रेस और मुस्लिम लीग सहित लगभग सभी राजनीतिक दलों ने इसे खारिज कर दिया। 1928 में जब यह कमीशन भारत आया, तो इसका हर जगह काले झंडों से स्वागत हुआ और "साइमन गो बैक" के नारे लगाए गए।

    मुख्य बिंदु:

    • सभी प्रमुख दलों का विरोध
    • काले झंडों के साथ प्रदर्शन
    • "साइमन गो बैक" आंदोलन
    • जनता में असंतोष की लहर


    5. लाला लाजपत राय की शहादत

    30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में एक विशाल जुलूस निकाला गया। इस दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जिसमें लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए। कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई। उनकी शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम को और तेज कर दिया।

    मुख्य बिंदु:

    • लाहौर में विरोध प्रदर्शन
    • पुलिस लाठीचार्ज
    • लाला लाजपत राय घायल
    • मृत्यु के बाद आंदोलन में तेजी


    6. कमीशन की रिपोर्ट

    साइमन कमीशन ने 1930 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें प्रांतीय स्वायत्तता बढ़ाने की सिफारिश की गई, लेकिन केंद्रीय स्तर पर नियंत्रण ब्रिटिश सरकार के पास ही रखने का सुझाव दिया गया। भारतीय नेताओं ने इसे भी अपर्याप्त बताया।

    मुख्य बिंदु:

    • 1930 में रिपोर्ट प्रस्तुत
    • प्रांतीय स्वायत्तता पर जोर
    • केंद्र पर ब्रिटिश नियंत्रण
    • भारतीयों की असंतुष्टि


    7. ऐतिहासिक महत्व

    साइमन कमीशन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का अहम मोड़ था। इसने जनता को एकजुट किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक आक्रोश पैदा किया। इसके विरोध ने बाद में नेहरू रिपोर्ट और गोलमेज सम्मेलन जैसी घटनाओं को जन्म दिया।

    मुख्य बिंदु:

    • जन एकता में वृद्धि
    • नेहरू रिपोर्ट की पृष्ठभूमि
    • गोलमेज सम्मेलन की नींव
    • स्वतंत्रता की दिशा में बड़ा कदम


    8. निष्कर्ष

    साइमन कमीशन का इतिहास हमें यह सिखाता है कि किसी भी राष्ट्र के भविष्य के निर्णय उसके लोगों की भागीदारी के बिना अधूरे हैं। भारतीयों के बहिष्कार ने इसे असफल बना दिया, लेकिन इसने स्वतंत्रता संग्राम की आग को और भड़का दिया।


    9. FAQs

    1. साइमन कमीशन कब गठित हुआ था?

    1927 में।

    2. इसके अध्यक्ष कौन थे?

    सर जॉन साइमन।

    3. इसमें कितने सदस्य थे?

    सात सदस्य।

    4. क्या कोई भारतीय इसमें शामिल था?

    नहीं।

    5. भारतीयों ने इसका विरोध क्यों किया?

    क्योंकि इसमें कोई भारतीय प्रतिनिधि नहीं था।

    6. "साइमन गो बैक" नारा कब गूंजा?

    1928 में कमीशन के भारत आगमन पर।

    7. लाला लाजपत राय को चोट कब लगी?

    30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में।

    8. रिपोर्ट कब प्रस्तुत हुई?

    1930 में।

    9. रिपोर्ट में क्या सिफारिश थी?

    प्रांतीय स्वायत्तता बढ़ाना, लेकिन केंद्र ब्रिटिश नियंत्रण में रखना।

    10. इसका प्रभाव क्या हुआ?

    जन एकता और स्वतंत्रता आंदोलन में तेजी।


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