ग्लेशियर के संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन 2025
International Glacier Conservation Summit 2025
प्रस्तावना - ग्लेशियर क्यों महत्वपूर्ण हैं
- ग्लेशियर धरती के "वॉटर टॉवर" हैं।
- वैश्विक मीठे पानी का 70% हिस्सा इनमें सुरक्षित है।
- एशिया की नदियाँ (गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र) ग्लेशियरों से निकलती हैं।
- इनका संरक्षण मानव जीवन और पारिस्थितिकी के लिए ज़रूरी है।
सम्मेलन की पृष्ठभूमि और उद्देश्य
- पेरिस समझौते के बाद यह नया कदम।
- ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार तेज़ हो रही है।
- सम्मेलन का उद्देश्य वैश्विक जागरूकता और नीतियाँ बनाना।
- वैज्ञानिक, सरकारें और संस्थाएँ एक साथ आईं।
जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियरों की स्थिति
- वैश्विक तापमान में 1.2°C वृद्धि।
- हिमालयी और आर्कटिक ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे।
- पानी की कमी और बाढ़ का खतरा बढ़ा।
- हर साल अरबों टन बर्फ गायब हो रही है।
एशिया और हिमालय क्षेत्र की चुनौतियाँ
- एशिया के 1.5 अरब लोग ग्लेशियरों पर निर्भर।
- गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन सबसे संवेदनशील।
- कृषि, बिजली और पीने के पानी पर असर।
- जलवायु आपदाओं का खतरा बढ़ा।
समुद्र स्तर वृद्धि और वैश्विक खतरे
- पिघलते ग्लेशियर समुद्र स्तर बढ़ा रहे हैं।
- तटीय शहरों के डूबने का खतरा।
- छोटे द्वीपीय राष्ट्र संकट में।
- जलवायु शरणार्थियों की संख्या बढ़ सकती है।
सम्मेलन का आयोजन स्थल और प्रतिभागी देश
- सम्मेलन 2025 में जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड में आयोजित।
- 80+ देशों की भागीदारी।
- संयुक्त राष्ट्र, UNEP और IPCC सक्रिय।
- एशियाई और आर्कटिक राष्ट्र विशेष रूप से शामिल।
भारत और हिमालयी राष्ट्रों की भूमिका
- भारत ने “हिमालय ग्लेशियर प्रोटेक्शन पहल” शुरू की।
- नेपाल, भूटान, चीन और पाकिस्तान भी जुड़े।
- SAARC और BIMSTEC स्तर पर पहल।
- सामूहिक प्रयास से हिमालय संरक्षण पर ध्यान।
वैज्ञानिक अनुसंधान और नई तकनीक
- सैटेलाइट मॉनिटरिंग और ड्रोन रिसर्च।
- AI आधारित जलवायु मॉडलिंग।
- ग्रीन टेक्नोलॉजी से पिघलाव कम करने के प्रयास।
- जल प्रबंधन के लिए डेटा आधारित समाधान।
ग्लेशियर संरक्षण के लिए नीति और समझौते
- ग्लोबल ग्लेशियर प्रोटेक्शन ट्रीटी पर चर्चा।
- कार्बन उत्सर्जन घटाने का संकल्प।
- अंतरराष्ट्रीय फंडिंग और तकनीकी सहयोग।
- साझा नीतियाँ और निगरानी तंत्र।
स्थानीय समुदायों और आदिवासी समाज का योगदान
- हिमालयी समुदायों की पारंपरिक ज्ञान प्रणाली।
- जल-संरक्षण और वृक्षारोपण अभियान।
- युवा और महिलाओं की भागीदारी।
- लोक संस्कृति और संरक्षण का संगम।
सतत विकास और पर्यावरणीय न्याय
- विकास और संरक्षण का संतुलन।
- गरीब और संवेदनशील क्षेत्रों को प्राथमिकता।
- जलवायु न्याय और समान अवसर।
- SDGs के अनुरूप पहल।
नवीकरणीय ऊर्जा और कार्बन न्यूट्रल लक्ष्य
- कोयले और पेट्रोलियम पर निर्भरता कम करना।
- सौर, पवन और जलविद्युत पर जोर।
- कार्बन न्यूट्रल 2050 लक्ष्य।
- ग्लेशियर संरक्षण को इसमें जोड़ा गया।
वैश्विक सहयोग और फंडिंग तंत्र
- ग्रीन क्लाइमेट फंड का उपयोग।
- विकसित देशों की जिम्मेदारी तय।
- तकनीक और वित्तीय संसाधन साझा।
- विकासशील देशों को समर्थन।
भविष्य की प्राथमिकताएँ और रोडमैप
- हर साल ग्लेशियर मॉनिटरिंग रिपोर्ट जारी।
- अंतर्राष्ट्रीय संस्थान और सहयोग केंद्र।
- क्षेत्रीय चेतावनी प्रणाली का विकास।
- 2040 तक स्थायी संरक्षण लक्ष्य।
निष्कर्ष
FAQs
1) ग्लेशियर क्यों महत्वपूर्ण हैं?
ग्लेशियर मुख्यतः पृथ्वी के बड़े मीठे-जल भंडार हैं जो नदियों को सीज़नल पानी प्रदान करते हैं। वे कृषि, पीने के पानी, हाइड्रो-पावर और पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन के लिए आवश्यक हैं। ग्लेशियर का पिघलना जल आपूर्ति अस्थिर करता है, सूखा-बाढ़ जोखिम बढ़ाता और व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव डालता है।
2) सम्मेलन 2025 का मुख्य उद्देश्य क्या था?
सम्मेलन का उद्देश्य ग्लेशियर संरक्षण हेतु वैश्विक नीति, वैज्ञानिक सहमति और वित्तीय साधन जुटाना था। इसमें निगरानी, तकनीक हस्तांतरण, स्थानीय समुदायों की भागीदारी और कार्बन-कटौती के लक्ष्यों के समेकित रोडमैप पर सहमति बनाई गई। लक्ष्य था बहुउद्देशीय कार्ययोजना बनाकर तात्कालिक और दीर्घकालिक कदम सुनिश्चित करना।
3) ग्लेशियर पिघलने का प्रमुख कारण क्या है?
मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है — वायु तापमान वृद्धि और मानवीय ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन। स्थानीय कारणों में वनों की कटाई, अतिसंदूषण (ब्लैक कार्बन), स्थलाकृतिक परिवर्तनों और मानवीय गतिविधियाँ शामिल हैं। संयुक्त प्रभाव ग्लेशियरों को पतला और अस्थिर कर रहा है, जिससे पिघलाव और हिम-गठनों में तेजी आ रही है।
4) एशिया और हिमालय क्षेत्र पर इसका क्या प्रभाव है?
हिमालय एशिया का वाटर-टॉवर है; यहाँ के ग्लेशियर गंगा-ब्रह्मपुत्र-सिन्धु बेसिनों को जलापूर्ति करते हैं। इनके पिघलने से शुरुआत में बहाव बढ़ेगा, पर दीर्घकाल में जलस्रोत घटेंगे, खेती और ऊर्जा पर नकारात्मक असर होगा। लाखों लोगों की आजीविका, खाद्य सुरक्षा और नदी-आधारित अर्थव्यवस्था खतरे में पड़ सकती है।
5) समुद्र स्तर वृद्धि से किन देशों को सबसे ज़्यादा खतरा है?
सबेसे संवेदनशील देशों में छोटे द्वीपीय राष्ट्र (मालदीव, तुवालु), तटीय विकासशील देश और बड़े बंदरगाह शहर शामिल हैं। समुद्र स्तर वृद्धि से तटीय कटाव, लवण प्रवेशन, कृषि भूमि हानि और विस्थापन होगा। ये प्रभाव गरीब समुदायों पर सबसे अधिक प्रभाव छोड़ते हैं, इसलिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन और अनुकूलन योजनाएँ अनिवार्य हैं।
6) वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीक से कैसे मदद मिलेगी?
सैटेलाइट इमेजिंग, ड्रोन सर्वे, थर्मल मैपिंग और AI-मॉडल ग्लेशियर गतिशीलता-मॉनिटरिंग में सटीकता बढ़ाते हैं। बेहतर डेटा से जोखिम मानचित्र, आपदा चेतावनी और जल प्रबंधन नीति बनाई जा सकती है। तकनीक स्थानीय स्तर पर लागू कर ज्यादा समय रहते बचाव संभव होगा तथा दीर्घकालिक संरक्षण योजना प्रभावी बनेगी।
7) स्थानीय समुदाय और आदिवासी समाज कैसे योगदान दे सकते हैं?
स्थानीय जनजातियाँ पारंपरिक जल-ज्ञान, जलस्रोत संरक्षण पद्धतियाँ और भूमि-प्रबंधन का अमूल्य अनुभव रखती हैं। उनकी भागीदारी योजना निर्माण, निगरानी, वृक्षारोपण और चेतना कार्यक्रमों में जरूरी है। स्थानीय नेतृत्व के साथ मिलकर समाधानों को सांस्कृतिक रूप से व्यवहार्य और दीर्घकालिक बनाया जा सकता है।
8) क्या ग्लोबल ग्लेशियर प्रोटेक्शन ट्रीटी बनी?
सम्मेलन में ऐसी व्यापक संधि पर गंभीर चर्चा हुई और कई देशों ने प्रारम्भिक सहमति दी। अभी अंतिम टेक्स्ट, वित्तीय व्यवस्था और अनुपालन तंत्र पर काम जारी है। अंतिम रूप देने के बाद यह ट्रीटी ग्लेशियर निगरानी, तकनीकी सहायता और संवेदनशील देशों के लिए फंडिंग-मैकेनिज़्म सुनिश्चित करेगी।
9) ग्लेशियर संरक्षण के लिए किन नीतिगत कदमों की ज़रूरत है?
ज़रूरी कदमों में कार्बन उत्सर्जन-घटाना, ब्लैक-कार्बन नियंत्रण, क्षेत्रीय निगरानी नेटवर्क, तटीय-और-नदीय कामकाज का अनुकूलन, स्थानीय सामुदायिक कार्यक्रम और लक्षित वित्त पोषण शामिल हैं। नीति-फ्रेम में पारदर्शिता, जवाबदेही और वैज्ञानिक-नियंत्रण अनिवार्य होंगे ताकि क्रियान्वयन असरदार बने।
10) फंडिंग और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का क्या स्वरूप होगा?
विकसित देशों, ग्रीन क्लाइमेट फंड और बहुपक्षीय बैंकों के माध्यम से वित्तीय सहायता का संयोजन प्रस्तावित है। तकनीकी-हस्तांतरण, क्षमता-निर्माण और लोक-निजी साझेदारी के जरिए संसाधन उपलब्ध कराए जाएँगे। संवेदनशील देशों के लिए विशेष अनुदान और लचीले अनुदान-शर्तें चर्चा का मुख्य भाग रहीं।
11) किस तरह की तात्कालिक क्रियाएँ स्थानीय स्तर पर की जानी चाहिए?
तात्कालिक क्रियाओं में जल संचयन, बाढ़-रोकथाम संरचनाएँ, चेतावनी प्रणालियाँ, सामुदायिक प्रशिक्षण, वृक्षारोपण और सूखा-प्रबंधन शामिल हैं। स्थानीय जलग्रहण क्षमता बढ़ाने तथा आपदा-प्रबंधन योजनाओं का निर्माण प्राथमिकता चाहिए ताकि आने वाली बदलती जल परिस्थितियों का तुरंत असर कम किया जा सके।
12) 2050/2040 लक्ष्यों की व्यवहार्यता कैसी है?
कठोर परन्तु संभव है — आवश्यकता वैश्विक राजनीतिक इच्छाशक्ति, पर्याप्त वित्त और त्वरित तकनीकी कार्यान्वयन की है। यदि कार्बन कटौती, निगरानी नेटवर्क और स्थानीय अनुकूलन तुरंत लागू हों, तो 2040/2050 टार्गेट्स हेतु मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है; अन्यथा जोखिम तेजी से बढ़ेगा।

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