सिन्धु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता

Sindhu Ghati Sabhyata


भारत की प्राचीनतम सभ्यता का विस्तृत विश्लेषण

परिचय: सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव और महत्व

सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization), जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, विश्व की प्राचीनतम और सुनियोजित शहरी सभ्यताओं में से एक है। यह सभ्यता 3300 ई.पू. से 1300 ई.पू. के मध्य विकसित हुई थी और वर्तमान पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत के क्षेत्रों में फैली थी। यह सभ्यता अपने विकसित नगर नियोजन, जल निकासी प्रणाली, और समृद्ध व्यापार के लिए जानी जाती है।

सिंधु घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार

सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार बहुत ही व्यापक था। इसके प्रमुख नगरों में शामिल हैं:

  • हड़प्पा (पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में)
  • मोहनजोदड़ो (सिंध प्रांत, पाकिस्तान)
  • धोलावीरा (गुजरात, भारत)
  • कालीबंगा (राजस्थान, भारत)
  • राखीगढ़ी (हरियाणा, भारत)
  • लोथल (गुजरात, भारत)

इस सभ्यता का क्षेत्रफल लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर था, जो इसे मिस्र और मेसोपोटामिया से भी बड़ी सभ्यता बनाता है।

नगर नियोजन और वास्तुकला

सिंधु सभ्यता का नगर नियोजन अत्यंत आधुनिक और व्यवस्थित था। नगरों को ईंटों से बनी सड़कों, नालियों, और घरों के सुव्यवस्थित ढांचे के साथ विकसित किया गया था। प्रमुख विशेषताएँ थीं:

  • पक्की ईंटों से बने मकान
  • सड़कों का ग्रिड पैटर्न
  • जल निकासी की उत्तम व्यवस्था
  • सार्वजनिक स्नानागार, जैसे कि मोहनजोदड़ो का महान स्नानागार
  • किलेबंद क्षेत्र जो प्रशासनिक और धार्मिक केंद्रों के रूप में कार्य करते थे

आर्थिक व्यवस्था और व्यापार

सिंधु घाटी की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि, शिल्पकला, और व्यापार पर आधारित थी। प्रमुख आर्थिक गतिविधियाँ थीं:

  • कृषि: गेहूं, जौ, तिल, चना, कपास आदि की खेती।
  • पालतू जानवर: बैल, भैंस, भेड़, बकरी, और कुत्ता।
  • शिल्पकला: मोतियों का निर्माण, टेराकोटा की मूर्तियाँ, धातु और पत्थर की नक्काशी।
  • व्यापार: मेसोपोटामिया (सुमेरिया), फारस और अफगानिस्तान तक व्यापार के प्रमाण मिले हैं।

लोथल बंदरगाह के अवशेष समुद्री व्यापार की पुष्टि करते हैं।

लिपि और लेखन प्रणाली

सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि चित्रलिपि (Pictographic Script) के रूप में जानी जाती है। अब तक इसे पूरी तरह से पढ़ा नहीं जा सका है। इसकी लिपि:

  • लगभग 400 चिह्नों से मिलकर बनी है
  • ज्यादातर मृदभांडों, मुहरों, तांबे की पट्टियों और चूने के पत्थरों पर अंकित मिली है
  • यह बाएँ से दाएँ और कभी-कभी दाएँ से बाएँ भी लिखी जाती थी

धार्मिक विश्वास और सामाजिक जीवन

सिंधु घाटी के लोगों की धार्मिक मान्यताएँ प्रकृति और शक्ति के प्रतीकों पर आधारित थीं। प्रमुख धार्मिक संकेत:

  • मातृ देवी की मूर्तियाँ, जो मातृत्व और प्रजनन की पूजा का प्रतीक हैं
  • पशुपति मुहर, जिसमें एक देवता को तीन मुखों और पशुओं के साथ दिखाया गया है – जिसे कुछ विद्वान शिव से जोड़ते हैं
  • पूजन स्थलों और अग्निकुंडों के प्रमाण
  • पीपल, जल, और अग्नि जैसे प्राकृतिक तत्वों की पूजा

सामाजिक जीवन में:

  • स्त्री-पुरुष समानता के संकेत
  • सौंदर्य प्रसाधन और आभूषणों का उपयोग
  • व्यवस्थित रहन-सहन और स्वच्छता

विज्ञान, तकनीक और जल प्रबंधन

सिंधु सभ्यता के लोग गणित, मानचित्रण, और इंजीनियरिंग में निपुण थे:

  • सटीक माप के लिए वजन और मापन प्रणाली
  • जल निकासी प्रणाली में हर घर से मुख्य नाली तक जल प्रवाह की व्यवस्था
  • कुएँ और स्नानागारव्यक्तिगत और सार्वजनिक दोनों प्रकार

संस्कृति, कला और शिल्प

सिंधु घाटी की संस्कृति बहुआयामी थी, जिसमें संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला और वस्त्र निर्माण की कला समाहित थी:

  • ब्रॉन्ज डांसर: कांस्य की बनी एक युवती की मूर्ति, जो नृत्य की परिपक्वता दिखाती है
  • टेराकोटा खिलौने, मोहरें, आभूषण, और मूर्तियाँ
  • घरेलू वस्त्रों में सूती कपड़ों का उपयोग, जिससे कपास की प्रारंभिक जानकारी मिलती है

पतन के कारण

सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के कारणों पर आज भी शोध जारी है, लेकिन प्रमुख संभावनाएँ हैं:

  • नदी मार्गों का परिवर्तन, विशेषकर घग्घर-हकरा नदी (प्राचीन सरस्वती)
  • जलवायु परिवर्तन और सूखा
  • आक्रमण, विशेषकर आर्यों का आगमन
  • व्यापार मार्गों का विघटन और शहरी केंद्रों की उपेक्षा

सिंधु घाटी सभ्यता की विरासत

आज भी सिंधु घाटी सभ्यता की अनेक विशेषताएँ भारतीय संस्कृति में समाहित हैं:

  • स्वच्छता और जल प्रबंधन
  • कृषि आधारित अर्थव्यवस्था
  • सामाजिक संरचना और नगर नियोजन
  • हस्तकला और कुटीर उद्योगों की परंपरा

यह सभ्यता न केवल भारत की इतिहासिक धरोहर है, बल्कि यह विश्व के लिए भी एक अभूतपूर्व अध्ययन का केंद्र बनी हुई है।

 

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