उत्तर प्रदेश विधान परिषद (Uttar Pradesh Legislative Council) राज्य की द्विसदनीय विधायिका का ऊपरी सदन (Upper House) है। यह भारतीय संसद की राज्यसभा की तरह कार्य करता है और उत्तर प्रदेश उन कुछ राज्यों में से एक है जहाँ विधान परिषद की व्यवस्था है।
🏛️ उत्तर प्रदेश विधान परिषद: परिचय
विषय | विवरण |
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स्थापना | 1937 (Government of India Act, 1935 के तहत) |
प्रकार | स्थायी सदन (Permanent House) |
सदस्यों की कुल संख्या | अधिकतम 100 (वर्तमान में 100) |
कार्यकाल | प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष |
एक-तिहाई सदस्य हर 2 वर्ष में सेवानिवृत्त होते हैं | |
बैठक स्थल | विधान भवन, लखनऊ |
🔹 विधान परिषद के सदस्य कैसे चुने जाते हैं?
विधान परिषद के सदस्य सीधे जनता द्वारा नहीं, बल्कि विभिन्न निकायों के माध्यम से चुने जाते हैं:
श्रेणी | प्रतिशत / संख्या |
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विधायक द्वारा चुने गए | 36 सदस्य |
स्थानीय निकायों से | 36 सदस्य |
स्नातक निर्वाचन क्षेत्र | 8 सदस्य |
शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र | 8 सदस्य |
राज्यपाल द्वारा नामित | 12 सदस्य (साहित्य, विज्ञान, कला, समाज सेवा आदि क्षेत्रों से) |
🔹 प्रमुख पदाधिकारी (Key Officers)
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सभापति (Chairman) – आमतौर पर उपमुख्यमंत्री या कैबिनेट मंत्री को यह पद मिलता है (जैसे कि विधान सभा में अध्यक्ष होता है)
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उपसभापति (Deputy Chairman)
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विपक्ष के नेता (Leader of Opposition)
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सचिवालय कर्मचारी (Council Secretariat Staff)
🔹 विधान परिषद के कार्य
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विधायी कार्य (Legislative Functions)
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राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर पुनः विचार
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सुझाव देना, संशोधन प्रस्ताव करना
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वित्तीय कार्य
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परिषद बजट पर चर्चा कर सकती है, लेकिन वित्तीय विधेयकों को रोक नहीं सकती।
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सरकार की समीक्षा (Review of Executive)
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प्रश्न पूछना, बहस में भाग लेना, सरकारी नीतियों की समीक्षा करना
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स्थायी प्रकृति (Permanent House)
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यह कभी भंग नहीं होती, जिससे यह सरकार की निरंतरता को सुनिश्चित करता है।
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🔹 विधान परिषद बनाम विधान सभा
विषय | विधान परिषद | विधान सभा |
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स्थिति | ऊपरी सदन | निचला सदन |
सदस्य संख्या | अधिकतम 100 | 403 |
कार्यकाल | 6 वर्ष | 5 वर्ष |
भंग किया जा सकता है? | नहीं | हाँ |
जनता द्वारा चुनाव | नहीं (प्रत्यक्ष नहीं) | हाँ (प्रत्यक्ष) |
प्रभाव | सीमित | अधिक |
📌 निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश की विधान परिषद राज्य की कानून निर्माण प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण लेकिन परामर्शात्मक अंग है। इसकी भूमिका संतुलन और पुनर्विचार की होती है, जिससे विधायी कार्यों में गुणवत्ता और विवेक बना रहे। यह संस्था प्रशासनिक अनुभव, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और स्थानीय प्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित करती है।
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