भारतीय संसद

भारतीय संसद(Bhartiya Sansad)


लोकतंत्र का स्तंभ और 15 ज़रूरी तथ्य


लेख का खाका (Outline in Table Format)

क्रमांक शीर्षक
1 भारतीय संसद का परिचय
2 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
3 भारतीय संसद की संरचना
4 राष्ट्रपति और संसद का संबंध
5 लोकसभा
6 राज्यसभा
7 संसद का कार्यकाल
8 संसद के प्रमुख कार्य
9 विधायी कार्य
10 वित्तीय कार्य
11 कार्यपालिका पर नियंत्रण
12 न्यायिक कार्य
13 विशेष शक्तियाँ
14 संसद भवन और नई संसद
15 आलोचना और सीमाएँ
16 निष्कर्ष
17 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

    भारतीय संसद का परिचय

    भारतीय संसद देश की सर्वोच्च विधायी संस्था है। यह जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों से मिलकर बनी है।
    संविधान के अनुच्छेद 79 से 122 तक संसद के संगठन, संरचना और शक्तियों का वर्णन किया गया है।
    भारतीय संसद देश की सर्वोच्च विधायिका है, जहाँ जनता के प्रतिनिधि बैठकर कानून बनाते हैं। यह लोकतंत्र की आत्मा और नीति-निर्माण की सबसे बड़ी संस्था है। संसद का गठन राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा से मिलकर होता है। भारतीय संविधान ने संसद को व्यापक शक्तियाँ प्रदान की हैं ताकि वह जनता के अधिकारों की रक्षा कर सके और शासन को पारदर्शी बना सके। संसद जनता और सरकार के बीच सेतु का कार्य करती है। यही कारण है कि इसे लोकतंत्र का मंदिर और सर्वोच्च निर्णय-निर्माण केंद्र माना जाता है।


    ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

    भारतीय संसद की जड़ें ब्रिटिश काल से जुड़ी हैं। 1861 के भारतीय परिषद अधिनियम ने पहली बार कानून बनाने के लिए विधायी निकाय की शुरुआत की। इसके बाद 1919 का मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार और 1935 का भारत सरकार अधिनियम ने संसद की संरचना को और विकसित किया। स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा ने एक लोकतांत्रिक और संसदीय प्रणाली अपनाने का निर्णय लिया। इस प्रकार, आज की संसद ऐतिहासिक विकास और स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों का परिणाम है। यह संस्था भारत के लोकतांत्रिक आदर्शों की जीवंत अभिव्यक्ति है।
    • ब्रिटिश शासनकाल में भारत में केंद्रीय विधानमंडल की शुरुआत हुई।
    • भारत सरकार अधिनियम, 1919 और 1935 से संसद का आधार तैयार हुआ।
    • स्वतंत्रता के बाद, संविधान निर्माताओं ने भारत को संसदीय लोकतंत्र दिया।


    भारतीय संसद की संरचना

    भारतीय संसद एक द्विसदनीय निकाय (Bicameral Legislature) है, जिसमें राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा शामिल हैं। लोकसभा निचला सदन है और इसमें सीधे चुने गए प्रतिनिधि होते हैं, जबकि राज्यसभा उच्च सदन है, जिसमें राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व होता है। राष्ट्रपति संसद का औपचारिक अंग है और उसकी सहमति के बिना कोई विधेयक कानून नहीं बन सकता। इस संरचना का उद्देश्य जनता की इच्छा और राज्यों के हितों के बीच संतुलन स्थापित करना है। यह प्रणाली भारत के संघीय ढाँचे और लोकतांत्रिक परंपरा को मजबूत बनाती है।

    भारतीय संसद द्विसदनीय (Bicameral) है, जिसमें तीन अंग हैं:

    1. राष्ट्रपति
    2. लोकसभा (निचला सदन)
    3. राज्यसभा (उच्च सदन)


    राष्ट्रपति और संसद का संबंध

    भारतीय राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है। यद्यपि वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद के पास होती है, फिर भी विधायी प्रक्रिया में राष्ट्रपति की भूमिका महत्वपूर्ण है। किसी भी विधेयक को कानून बनने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक है। संसद के सत्र बुलाना, स्थगित करना और लोकसभा को भंग करना राष्ट्रपति के अधिकारों में शामिल है। राष्ट्रपति संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हैं और राष्ट्र की नीतियों का खाका प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार, राष्ट्रपति संसद और कार्यपालिका के बीच औपचारिक सेतु का कार्य करते हैं।
    • राष्ट्रपति संसद का अविभाज्य अंग है।
    • किसी भी विधेयक को कानून बनने के लिए राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक है।
    • संसद का अधिवेशन बुलाना, स्थगित करना और भंग करना राष्ट्रपति के अधिकार में है।


    लोकसभा

    लोकसभा को जनता का सदन कहा जाता है क्योंकि इसके सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं। यह संसद का निचला सदन है, लेकिन विधायी और वित्तीय कार्यों में इसका प्रभाव सबसे अधिक होता है। लोकसभा में अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से 530 राज्य, 20 केंद्रशासित प्रदेश और 2 राष्ट्रपति द्वारा नामित होते हैं। वर्तमान में इसमें 543 सदस्य हैं। लोकसभा का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है। इसके प्रमुख अधिकारी स्पीकर और डिप्टी स्पीकर होते हैं। लोकसभा सरकार को जवाबदेह बनाती है और लोकतंत्र को मजबूती देती है।
    • लोकसभा को जनता का सदन (House of the People) कहा जाता है।
    • सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं।
    • कुल अधिकतम सदस्य: 552 (530 राज्य से, 20 केंद्र शासित प्रदेश से, 2 राष्ट्रपति द्वारा नामित)।
    • वर्तमान में: 543 निर्वाचित सदस्य।
    • कार्यकाल: 5 वर्ष (आपातकाल में बढ़ाया जा सकता है)।
    • अध्यक्ष: लोकसभा स्पीकर।


    राज्यसभा

    राज्यसभा संसद का उच्च सदन है और इसे राज्यों का सदन भी कहा जाता है। इसमें अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से 238 निर्वाचित और 12 राष्ट्रपति द्वारा नामित होते हैं। राज्यसभा स्थायी सदन है, इसे भंग नहीं किया जा सकता। हर दो वर्ष में इसके एक-तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं। इसका सभापति भारत का उपराष्ट्रपति होता है। राज्यसभा का मुख्य कार्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के हितों का प्रतिनिधित्व करना है। यह लोकसभा द्वारा लिए गए निर्णयों पर गंभीर चर्चा करके लोकतांत्रिक प्रक्रिया को संतुलन प्रदान करती है।
    • राज्यसभा को राज्यों का सदन (Council of States) कहा जाता है।
    • सदस्य राज्यों की विधानसभाओं और केंद्र शासित प्रदेशों से चुने जाते हैं।
    • कुल सदस्य: 250 (238 निर्वाचित, 12 राष्ट्रपति द्वारा नामित)।
    • कार्यकाल: स्थायी सदन, हर 2 वर्ष में 1/3 सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं।
    • सभापति: भारत के उपराष्ट्रपति।


    संसद का कार्यकाल

    संसद की कार्यवाही को सत्रों में विभाजित किया जाता है। भारतीय संसद के तीन प्रमुख सत्र होते हैं—बजट सत्र (फरवरी–मई), वर्षा सत्र (जुलाई–सितंबर) और शीतकालीन सत्र (नवंबर–दिसंबर)। प्रत्येक सत्र की अवधि लगभग 2 से 3 महीने होती है। सत्र बुलाने और स्थगित करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास होता है। कार्यकाल के दौरान संसद कानून बनाने, बजट पास करने और सरकार को उत्तरदायी बनाने जैसे कार्य करती है। संविधान यह सुनिश्चित करता है कि दो सत्रों के बीच छह महीने से अधिक का अंतर न हो।

    संसद के सत्र

    1. जट सत्र (फरवरी–मई)
    2. वर्षा सत्र (जुलाई–सितंबर)
    3. शीतकालीन सत्र (नवंबर–दिसंबर)

    संसद के प्रमुख कार्य

    भारतीय संसद के कार्य व्यापक और बहुआयामी हैं। इसका सबसे प्रमुख कार्य कानून बनाना है। इसके अलावा संसद वित्तीय मामलों में सरकार पर नियंत्रण रखती है, जैसे कर लगाना, बजट पास करना और खर्च की अनुमति देना। यह कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाती है और प्रश्नकाल, स्थगन प्रस्ताव, तथा अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से जवाबदेही तय करती है। संसद संविधान संशोधन कर सकती है और आपातकालीन प्रावधानों को भी स्वीकृति देती है। इसके अलावा संसद राष्ट्र की विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर भी चर्चा करती है।
    1. कानून निर्माण
    2. वित्तीय नियंत्रण
    3. कार्यपालिका पर नियंत्रण
    4. न्यायिक कार्य
    5. नीतिगत निर्णय


    विधायी कार्य

    संसद का मूल कार्य विधायी यानी कानून बनाना है। नए विषयों पर कानून पारित करना, पुराने कानूनों में संशोधन करना और अप्रासंगिक कानूनों को निरस्त करना इसकी जिम्मेदारी है। विधायी कार्य लोकसभा और राज्यसभा दोनों मिलकर करते हैं, और अंतिम रूप से राष्ट्रपति की सहमति के बाद कोई विधेयक कानून बनता है। संसद विभिन्न प्रकार के विधेयक पारित करती है, जैसे सामान्य विधेयक, धन विधेयक और संविधान संशोधन विधेयक। इस प्रक्रिया के माध्यम से संसद देश की आवश्यकताओं और बदलती परिस्थितियों के अनुसार विधिक व्यवस्था को अद्यतन रखती है।
    • नए कानून बनाना।
    • पुराने कानूनों में संशोधन या निरसन।
    • केंद्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण।


    वित्तीय कार्य

    संसद को वित्तीय मामलों में सर्वोच्च अधिकार प्राप्त है। सरकार बिना संसद की स्वीकृति के कोई कर नहीं लगा सकती और न ही राजस्व खर्च कर सकती है। हर वर्ष वित्त मंत्री बजट प्रस्तुत करते हैं, जिसमें राजस्व और व्यय का विवरण होता है। वित्तीय विधेयक केवल लोकसभा में पेश किए जाते हैं और राज्यसभा की भूमिका सीमित होती है। संसद बजट पर बहस करती है, संशोधन प्रस्ताव पारित करती है और अंत में उसे मंजूरी देती है। इस प्रकार संसद जनता के धन के उपयोग पर निगरानी रखती है और पारदर्शिता सुनिश्चित करती है।
    • बजट की स्वीकृति।
    • कर लगाना और राजस्व खर्च की अनुमति।
    • लोकसभा वित्तीय मामलों में प्रमुख है।


    कार्यपालिका पर नियंत्रण

    लोकतंत्र में कार्यपालिका संसद के प्रति उत्तरदायी होती है। संसद सरकार से सवाल पूछ सकती है, बहस कर सकती है और निर्णयों की समीक्षा कर सकती है। प्रश्नकाल, शून्यकाल और स्थगन प्रस्ताव जैसे साधनों से सांसद सरकार से जवाब मांगते हैं। सबसे शक्तिशाली साधन अविश्वास प्रस्ताव है, जिसके माध्यम से लोकसभा सरकार को गिरा सकती है। इस नियंत्रण का उद्देश्य है कि सरकार जनता के हित में काम करे और निरंकुश न बने। संसद के माध्यम से कार्यपालिका पर निरंतर निगरानी लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करती है।

    • प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद संसद के प्रति जवाबदेह हैं।
    • प्रश्नकाल, स्थगन प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव द्वारा सरकार को उत्तरदायी बनाया जाता है।


    न्यायिक कार्य

    भारतीय संसद न्यायिक कार्य भी करती है। इसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शामिल है। संसद इन संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों की जवाबदेही तय करती है। इसके अलावा संसद अवमानना की कार्यवाही कर सकती है और संसद की गरिमा बनाए रखने के लिए दंड भी दे सकती है। संविधान संशोधन के माध्यम से भी संसद न्याय से जुड़े प्रावधानों में बदलाव कर सकती है। इस प्रकार संसद न्यायपालिका से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को निभाती है।
    • राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायाधीशों और अन्य उच्च पदाधिकारियों के खिलाफ महाभियोग चलाना।

    विशेष शक्तियाँ

    संसद के पास कुछ विशेष शक्तियाँ हैं जो उसे अन्य संस्थाओं से अलग बनाती हैं। यह संविधान संशोधन कर सकती है, नए राज्यों का निर्माण कर सकती है और मौजूदा राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है। संसद आपातकाल घोषित करने और उसे स्वीकृति देने की भी शक्ति रखती है। इसके अलावा संसद अंतरराष्ट्रीय समझौतों को मान्यता देती है और रक्षा, विदेश नीति जैसे राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर निर्णय लेती है। इन शक्तियों के माध्यम से संसद भारत की संप्रभुता और एकता को सुनिश्चित करती है।
    • संविधान संशोधन।
    • नए राज्यों का गठन या सीमाओं में परिवर्तन।
    • आपातकाल घोषित करना या उसकी स्वीकृति।


    संसद भवन और नई संसद

    पुराना संसद भवन 1927 में लुटियंस और बेकर की डिजाइन पर बनाया गया था। स्वतंत्रता के बाद यह भारत की लोकतांत्रिक गतिविधियों का केंद्र बना। समय के साथ जरूरतें बढ़ने पर नई संसद का निर्माण किया गया, जिसका उद्घाटन 28 मई 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। नई संसद भवन त्रिकोणीय आकार का है और इसमें अत्याधुनिक तकनीक, पर्यावरण के अनुकूल डिज़ाइन और भारतीय सांस्कृतिक तत्वों का समावेश है। यह न केवल एक भवन है बल्कि लोकतंत्र की नई ऊँचाइयों और भारत की प्रगति का प्रतीक है।

    • पुराना संसद भवन 1927 में बनाया गया।
    • नई संसद का उद्घाटन 28 मई 2023 को हुआ।
    • नई इमारत आधुनिक तकनीक और भारतीय संस्कृति का प्रतीक है।


    आलोचना और सीमाएँ

    भारतीय संसद की भूमिका अहम होते हुए भी इसमें कुछ कमजोरियाँ हैं। अक्सर देखा गया है कि संसद का कामकाज बाधित होता है, जिससे विधायी प्रक्रिया प्रभावित होती है। वंशवाद और राजनीति का अपराधीकरण भी आलोचना का विषय है। कई बार सांसदों की उपस्थिति और बहस का स्तर भी सवालों के घेरे में रहता है। इसके बावजूद संसद एक अनिवार्य संस्था है और इसे मजबूत बनाने की जिम्मेदारी सभी दलों और नेताओं की है। सुधारों और पारदर्शिता के साथ यह लोकतंत्र को और सशक्त बना सकती है।
    • वंशवाद और अपराधीकरण।
    • बहस की गुणवत्ता में गिरावट।
    • कई बार संसद का कामकाज बाधित होना।


    निष्कर्ष

    भारतीय संसद न केवल कानून बनाने की संस्था है बल्कि यह जनता की आकांक्षाओं का प्रतीक भी है। इसकी भूमिका व्यापक है—विधायी, वित्तीय, कार्यपालिका पर नियंत्रण और न्यायिक कार्य सभी इसमें शामिल हैं। संसद भारतीय लोकतंत्र की आत्मा है और इसकी मजबूती ही लोकतंत्र की सफलता सुनिश्चित करती है। यद्यपि इसमें कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन निरंतर सुधार और सक्रिय भागीदारी से यह विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक संस्था के रूप में और भी सशक्त बनेगी। संसद लोकतांत्रिक परंपराओं और जनता की आवाज़ की सच्ची अभिव्यक्ति है।

    भारतीय संसद लोकतंत्र का स्तंभ है। यह न केवल कानून बनाती है, बल्कि जनता के अधिकारों की रक्षा भी करती है। संसद की मजबूती ही भारत के लोकतंत्र की मजबूती है।


    अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

    1. भारतीय संसद में कुल कितने सदन हैं?

    दो – लोकसभा और राज्यसभा।

    2. संसद का स्थायी सदन कौन है?

    राज्यसभा।

    3. लोकसभा का कार्यकाल कितना होता है?

    5 वर्ष।

    4. संसद का अधिवेशन कौन बुलाता है?

    राष्ट्रपति।

    5. संसद के कितने सत्र होते हैं?

    तीन – बजट, वर्षा और शीतकालीन सत्र।

    6. नई संसद का उद्घाटन कब हुआ?

    28 मई 2023।


    📖 अधिक जानकारी के लिए देखें: भारतीय संसद की आधिकारिक वेबसाइट


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