नेपाल में आंदोलन 2025
कारण, प्रभाव और जन-आंदोलन की पूरी कहानी
परिचय
नेपाल में सितंबर 2025 में सोशल मीडिया बैन ने देश की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को पूरी तरह बदल दिया। सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और व्हाट्सएप जैसे बड़े प्लेटफॉर्म्स को अचानक ब्लॉक कर दिया। सरकार का दावा था कि ये कंपनियाँ देश के नियमों का पालन नहीं कर रही थीं। लेकिन इस कदम को जनता ने स्वतंत्रता पर हमला माना। खासकर युवाओं ने इसे अपनी आवाज़ दबाने का प्रयास समझा। परिणामस्वरूप, विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत हुई जिसने जल्द ही राष्ट्रीय संकट का रूप ले लिया और दुनिया का ध्यान नेपाल की ओर खींच लिया।
सोशल मीडिया बैन का कारण
नेपाल सरकार ने यह कठोर कदम इसलिए उठाया क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार सभी विदेशी सोशल मीडिया कंपनियों को स्थानीय रूप से पंजीकरण करना अनिवार्य था। अदालत ने कहा था कि अगर ये कंपनियाँ नेपाल के कानूनों और कर नीतियों का पालन नहीं करतीं तो उन्हें संचालन की अनुमति नहीं दी जा सकती। लेकिन फेसबुक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसी दिग्गज कंपनियों ने पंजीकरण नहीं कराया। इस वजह से सरकार ने आदेश दिया कि उन्हें तुरंत ब्लॉक किया जाए। यह कानूनी निर्णय था, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक रूप से बहुत विवादास्पद साबित हुआ।
किन-किन प्लेटफॉर्म्स पर लगा बैन
बैन की सूची में फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, ट्विटर (X), लिंक्डइन, रेडिट, स्नैपचैट और व्हाट्सएप जैसे लोकप्रिय प्लेटफॉर्म्स शामिल थे। कुल मिलाकर 26 अंतरराष्ट्रीय ऐप्स बंद कर दिए गए। हालांकि, कुछ ऐप्स जैसे टिकटॉक, वाइबर और निंबज चलते रहे क्योंकि उन्होंने सरकार की शर्तों को मानकर पंजीकरण पूरा किया। जनता को अचानक इन सेवाओं के न चलने से बड़ा झटका लगा। खासकर छात्रों, उद्यमियों और डिजिटल मार्केटिंग पर निर्भर लोगों पर इसका गहरा असर पड़ा। कई लोगों का मानना था कि सरकार ने असली समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए ऐसा किया।
बैन किए गए प्लेटफॉर्म्स में शामिल थे:
- YouTube
- X (Twitter)
- Snapchat
वहीं TikTok, Viber और Nimbuzz जैसे ऐप्स चलते रहे क्योंकि उन्होंने नियमों का पालन किया।
जनता की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया बैन के बाद जनता में गुस्सा तेजी से फैलने लगा। लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला मानने लगे। खासकर युवाओं ने इसे अपनी आज़ादी छीनने जैसा महसूस किया। कई लोग सड़कों पर उतर आए और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए। यह विरोध सिर्फ काठमांडू तक सीमित नहीं रहा बल्कि नेपाल के अन्य हिस्सों में भी फैल गया। लोगों का कहना था कि सरकार उनकी आवाज़ को दबाने और सेंसरशिप थोपने की कोशिश कर रही है। यह प्रतिक्रिया सरकार की उम्मीद से कहीं ज्यादा कठोर और व्यापक साबित हुई।
आंदोलन का स्वरूप
शुरुआत में विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे। लोग तख्तियां लेकर और नारे लगाकर अपनी नाराज़गी जताते रहे। लेकिन धीरे-धीरे प्रदर्शन उग्र होते गए। प्रदर्शनकारियों ने सरकारी भवनों और संसद को घेर लिया। कई जगहों पर पथराव, आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं हुईं। पुलिस ने हालात काबू में रखने के लिए आंसू गैस और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया। लेकिन भीड़ लगातार बढ़ती रही और माहौल बेकाबू हो गया। सोशल मीडिया बैन के विरोध ने एक व्यापक जनांदोलन का रूप ले लिया, जिसे नियंत्रित करना सरकार और सुरक्षा बलों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण बन गया।
मौतें और घायल
हिंसक प्रदर्शनों में कई जगह झड़पें हुईं जिनमें पुलिस और प्रदर्शनकारियों दोनों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। रिपोर्ट्स के अनुसार, कम से कम 19 लोगों की मौत हुई जबकि सैकड़ों लोग घायल हो गए। कई लोग पुलिस की गोलियों से घायल हुए जबकि कुछ लोग भगदड़ और आगजनी में फंस गए। अस्पतालों में घायलों की संख्या इतनी अधिक हो गई कि आपातकाल जैसी स्थिति पैदा हो गई। यह घटना नेपाल की राजनीति ही नहीं बल्कि समाज के लिए भी एक बड़ा झटका साबित हुई। जन-आंदोलन का यह खौफनाक पहलू अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गया।
मानवाधिकार संगठनों की प्रतिक्रिया
नेपाल के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने इस पूरे घटनाक्रम पर चिंता जताई। आयोग का कहना था कि सोशल मीडिया पर बैन लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह इस आदेश की समीक्षा करे और जनता की आवाज़ को दबाने के बजाय बातचीत का रास्ता अपनाए। कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने भी नेपाल के इस कदम की आलोचना की और कहा कि इससे देश की लोकतांत्रिक छवि धूमिल होगी। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार इस पर अड़ी रही तो नेपाल को वैश्विक स्तर पर आलोचना झेलनी पड़ेगी।
सेना का हस्तक्षेप
जैसे-जैसे हालात बिगड़ते गए, सरकार ने सेना को हस्तक्षेप के लिए बुलाया। काठमांडू और अन्य बड़े शहरों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया। सेना ने सड़कों पर गश्त शुरू की और भीड़ को तितर-बितर करने का प्रयास किया। कई इलाकों में सेना की मौजूदगी से कुछ समय के लिए शांति बनी, लेकिन तनाव अभी भी बना रहा। लोगों का कहना था कि सेना को लाकर सरकार अपने ही नागरिकों पर युद्ध छेड़ रही है। इस कदम ने गुस्से को और भड़का दिया। हालांकि सेना की सख्ती से हालात धीरे-धीरे नियंत्रण में आने लगे।
पीएम ओली का इस्तीफ़ा
विरोध और हिंसा की तीव्रता इतनी बढ़ गई कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली पर इस्तीफ़े का दबाव बनने लगा। अंततः उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। यह इस्तीफ़ा सिर्फ सोशल मीडिया बैन का परिणाम नहीं था, बल्कि यह युवाओं के गुस्से और व्यापक असंतोष का प्रतीक था। ओली के इस्तीफ़े के बाद राजनीतिक अस्थिरता और गहरी हो गई। विपक्ष ने इसे जनता की जीत बताया जबकि समर्थकों का कहना था कि यह सब योजनाबद्ध तरीके से किया गया। फिर भी, इस इस्तीफ़े ने नेपाल की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया।
सोशल मीडिया बैन की वापसी
प्रधानमंत्री के इस्तीफ़े और भारी दबाव के बीच सरकार ने सोशल मीडिया बैन को वापस लेने की घोषणा की। यह सरकार के लिए मजबूरी थी क्योंकि जनता और अंतरराष्ट्रीय दबाव दोनों बढ़ते जा रहे थे। सरकार ने कहा कि अब वह नए नियामक ढांचे पर काम करेगी और कंपनियों से बातचीत करके समाधान निकालेगी। हालांकि, जनता का भरोसा पहले ही टूट चुका था। सोशल मीडिया फिर से चालू होने के बाद भी लोग आशंकित रहे कि कहीं यह प्रतिबंध दोबारा न लगाया जाए।
राजनीतिक प्रभाव
इस पूरे घटनाक्रम का नेपाल की राजनीति पर गहरा असर पड़ा। विपक्ष ने सरकार की विफलता को उजागर किया और जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास किया। यह स्पष्ट हो गया कि नेपाल के युवा अब केवल दर्शक नहीं बल्कि राजनीति के सक्रिय हिस्सेदार बन गए हैं। इस आंदोलन ने यह संदेश दिया कि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और असमानता जैसे मुद्दों को अब दबाया नहीं जा सकता। सोशल मीडिया बैन भले ही तकनीकी समस्या लग रही थी, लेकिन असल में यह गहरे राजनीतिक और सामाजिक असंतोष का प्रतीक बन गया।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
नेपाल की इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान अपनी ओर खींचा। भारत समेत कई पड़ोसी देशों ने स्थिति पर चिंता व्यक्त की और अपने नागरिकों को नेपाल यात्रा से बचने की सलाह दी। पश्चिमी देशों ने सोशल मीडिया बैन की आलोचना की और इसे लोकतंत्र के खिलाफ कदम बताया। संयुक्त राष्ट्र के कुछ संगठनों ने भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए गए इस प्रतिबंध को अस्वीकार्य करार दिया। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इसे "Gen Z Protest" का नाम दिया। इस तरह नेपाल एक छोटे से निर्णय की वजह से वैश्विक सुर्खियों में आ गया।
पर्यटन पर असर
नेपाल की अर्थव्यवस्था काफी हद तक पर्यटन पर निर्भर है। लेकिन इन प्रदर्शनों और हिंसा ने पर्यटन उद्योग को गहरा नुकसान पहुँचाया। कई विदेशी पर्यटक काठमांडू और पोखरा में फंस गए। कई होटलों और गेस्टहाउसों में आगजनी हुई, जिससे नुकसान करोड़ों में हुआ। आने वाले महीनों में बुकिंग कैंसिल हो गईं और नेपाल को राजस्व का बड़ा झटका लगा। यह संकट केवल तात्कालिक नहीं बल्कि दीर्घकालिक साबित हो सकता है क्योंकि सुरक्षा और स्थिरता पर सवाल उठ गए। पर्यटन उद्योग को इस झटके से उबरने में काफी समय लगेगा।
निष्कर्ष
नेपाल का सोशल मीडिया बैन केवल तकनीकी निर्णय नहीं था, बल्कि यह लोकतंत्र, स्वतंत्रता और युवाओं की शक्ति का प्रतिबिंब था। सरकार ने भले ही इसे कानून और पंजीकरण के आधार पर लागू किया, लेकिन जनता ने इसे अपनी आज़ादी पर हमला माना। विरोध इतना व्यापक हुआ कि उसने सरकार को हिला दिया और प्रधानमंत्री को इस्तीफ़ा देना पड़ा। इस घटना ने दुनिया को यह दिखा दिया कि सोशल मीडिया अब सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि जनता की आवाज़ का एक अहम मंच बन चुका है। यह नेपाल के लोकतांत्रिक इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय बन गया।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: नेपाल ने सोशल मीडिया पर बैन क्यों लगाया?
उत्तर: सरकार का कहना था कि ये प्लेटफॉर्म्स पंजीकरण और नियामक नियमों का पालन नहीं कर रहे थे।प्रश्न 2: कौन-कौन से ऐप्स बंद किए गए?
उत्तर: Facebook, Instagram, WhatsApp, YouTube, X समेत 26 ऐप्स।प्रश्न 3: कौन से ऐप्स चलते रहे?
उत्तर: TikTok, Viber और Nimbuzz चलते रहे क्योंकि उन्होंने नियमों का पालन किया।प्रश्न 4: इस बैन के खिलाफ आंदोलन किसने शुरू किया?
उत्तर: मुख्य रूप से Gen Z यानी युवा वर्ग ने आंदोलन की अगुवाई की।प्रश्न 5: कितने लोगों की मौत हुई?
उत्तर: कम से कम 19 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए।

 
 
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